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द्वितीय अध्ययन - टिप्पणी]
[15 गंधन कुल के सर्प वे होते हैं जो डस लेने के बाद भी जब मन्त्रवादी द्वारा आकृष्ट किये जाते हैं तब भय के मारे डसी गई जगह पर मुँह लगाकर विष को वापस चूस लेते हैं। किन्तु दूसरे अगन्धन कुल के सर्प वे हैं जो जलती आग में कूदकर अपने प्राण दे सकते हैं पर छोड़े हुए विष को वापस नहीं चूसते । प्राचीन समय की एक घटना है
एक समय किसी राजपुत्री को एक साँप ने डस लिया । बड़े-बड़े चिकित्सकों को बुलाया गया। उनमें एक गारुड़ी मन्त्र का जानकार था, उसने कहा-“कहो तो मन्त्र से विष उतारूँ अथवा साँप को बुलाकर उसके डसे हुए स्थान से उसी के द्वारा विष निकलवाऊँ।" राजा ने कहाह्न“साँप को बुलाकर विष को निकलवाओ।" गारुड़ी ने मन्त्र बल से साँप को बुलाया और पूछा “इसको तूने डसा है ?” साँप ने कहा-“हाँ, मैंने ही डसा है।" गारुड़ी के यह कहने पर कि डसे हुए स्थान से विष को खींच लो; साँप ने उत्तर दिया-“मैंने एक बार छोड़े हुए विष को आज तक पुन: कभी चूसा ही नहीं है। अत: मैं यह विष भी वापिस नहीं लूँगा।" गारुड़ी ने आग जलाकर कहा-“या तो डसे हुए विष को निकालो या इस जलती हुई अग्नि में प्रवेश करो।" अगन्धन कुल के उस सर्प ने जलती आग में कूद कर प्राण गँवाना स्वीकार किया, किन्तु अपने छोड़े हुए विष को पुन: पीना स्वीकार नहीं किया।
। द्वितीय अध्ययन-टिप्पणी समाप्त ।। 8888888888888888888880