Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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जैन न्याय एवं तत्त्वमीमांसा
है। सन्निकर्षवादी नैयायिकोंने इसका समाधान करते हुए बतलाया है कि चक्षु सन्निकर्षमें घटादिकका ज्ञान करानेकी योग्यता है । आकाशादिका ज्ञान करानेको योग्यता नहीं है । अतः वह आकाशादिका ज्ञान नहीं कराता है । यह योग्यता विशिष्ट शक्तिका नाम है । उद्योतकरने सहकारियोंकी निकटताको शक्ति बतलाया है। अब प्रश्न यह है कि सन्निकर्षके सहकारी कारण द्रव्य हैं ? गुण हैं अथवा कर्म हैं ? आत्मद्रव्य तो सहकारी कारण हो नहीं सकता; क्योंकि आकाश और चक्षुके सन्निकर्षके समय आत्मा विद्यमान रहता है, फिर भी ज्ञान नहीं होता। इसीप्रकार काल, दिशा आदि भी सन्निकर्षके सहकारी कारण नहीं हो सकते; क्योंकि आकाश और चक्षुके सन्निकर्षके समय वे भी विद्यमान रहते हैं फिर भी आकाशका ज्ञान नहीं होता । मन भी सन्निकर्षका सहायक नहीं हो सकता; क्योंकि चक्षु और आकाशके सन्निकर्षके समय पुरुषका मन उस ओर हो तब भी आकाशका ज्ञान नहीं होता। अतः यह कहना ठीक नहीं कि आत्मा, मन, इन्द्रिय और अर्थ इन चारोंका सन्निकर्ष अर्थका ज्ञान कराने में साधकतम है; क्योंकि यह सब सामग्री आकाशके साथ सन्निकर्षके समय विद्यमान रहती है । यदि कहा जाये कि तेज द्रव्य प्रकाश सन्निकर्षका सहायक है; क्योंकि उनके होनेपर ही आँखोंसे ज्ञान होता है तो भी ठीक नहीं; क्योंकि घरकी तरह आकाशक साथ सन्निकर्षक समय प्रकाशके रहते हुए भी आकाशका ज्ञान नहीं होता। यदि अदष्ट गुणको सहायक माना जायेगा तो भी कभी न कभी आकाशका चक्षसे ज्ञान होनेका प्रसंग उपस्थित होगा; क्याकि सहकारी अदष्ट आकाश और सन्निकर्षके समय भी वर्तमान रहता है। इसी प्रकार कर्मको सन्निकर्षका सहकारी माननेसे भी वही दोष आता है; क्योंकि आकाश और इन्द्रियके सन्निकर्षके समय भी चक्षुका उन्मीलन-निमीलन कर्म चालू रहता है । अतः सहकारी कारणोंकी सहायता रूप शक्ति अर्थका ज्ञान कराने में साधक नहीं है, किन्तु ज्ञाताका अर्थको ग्रहण कर सकनेको शक्ति या योग्यता ही वस्तुका ज्ञान कराने में साधकतम है।
वस्तुतः नैयायिकके मतसे सन्निकर्ष स्वयं प्रमाण नहीं है, वह जिस ज्ञानको उत्पन्न करता है, वह ज्ञान ही प्रमाण है। ज्ञानकी उत्पत्ति इन्द्रिय और पदार्थके संयोग होनेपर होती है और यह संयोग कई प्रकारसे होता है। अतएव जो इन्द्रियार्थ-सन्निकर्षके प्रति तर्क दिये जाते हैं, उनमेंसे अधिकांश तर्क सार्थक नहीं हैं ।