Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित
. २५५ सुमेरु केन्द्रानुसार एक पंचवर्षीय युग में चन्द्रमा अभिजित नक्षत्रका भोग ( संयोग) ६७ बार करता है। ये ही ६७ चन्द्रमाके भगण कहलाते हैं। अतः पंचवर्षीय एक युगके दिनादि का मान इस प्रकार होगा
एक युगमें सौर दिन = १८०० ,,, चान्द्र मास = ६२ ,, , चान्द्र दिन = १८६० ,, ,, क्षय दिन = ३० भगण या नक्षत्रोदय = १८३०
चान्द्र भगण = ६७ चान्द्र सावन दिन - १७६८ एक सौर वर्ष में नक्षत्रोदय = ३६७ एक अयनसे दूसरे अयन पर्यन्त सौर दिन = १८०
एक अयनसे दूसरे अयन तक सावन दिन = १८३ चान्द्र वर्ष = २९३३ x १२=३५४१३; अधिक मास सहित चान्द्र वर्ष = ३८३३३ दिन
सौर वर्ष = ३०३ ४ १२ = ३६६ दिन; यहाँ ३ मान गणितके अनुसार पूरा नहीं आता है;
किन्तु उह मुहूर्तका अन्तर आता है। अतएव वर्ष ३६५ दिनसे कुछ अधिक होता है, जो कि आजकलके वर्षमानके तुल्य है।
जैन मनीषियोंने तिथिका आनयन भी उक्त प्रक्रिया द्वारा ही किया है, जो इस प्रकार है-जो चान्द्र संवत्सरमें ३५४१३ दिन होते हैं; अतएव एक चान्द्र मासमें ३५४३३ - २९६३ दिन होते है और एक चन्द्रमासमें दो पक्ष होते हैं । इसलिये २९३३ दिन = २९६३ दिन = २९३३ ४ १५ मुहूर्त = ४४२६६ मुहूर्त शुक्ल पक्ष और इतने ही मुहूर्त कृष्ण पक्षके भी होते हैं। इसी हिसाबसे एक तिथिका मान = २९३३ दिन = ६३, दिन = ६३ x ३० = २५३३ मुहूर्त । तिथिके भी दिन और रात्रिके भेदसे दो भेद हैं । सौर दिनकी अपेक्षासे दिन तिथि
और रात्रि तिथिके पांच-पांच भेद है। इस प्रकार पर्व तिथियों, दैनिक तिथियों एवं सौर तिथियोंका आनयन भी मेरु केन्द्रके आधार पर किया है। पञ्चवर्षात्मक युगका मान मानकर पञ्चाङ्ग गणित और ग्रह गणित दोनोंको साधनिका उक्त गणनानुसार घटित की गयी है। तुलनात्मक दृष्टिसे विचार करने पर जैन चिन्तकों द्वारा निरूपित मानमें किंचित् स्थूलता है, और उत्तरकालीन ज्योतिषियों द्वारा प्रतिपादित मानमें सूक्ष्मता है।
इस स्थूलताका परिहार महेन्द्रसूरिने नाड़ी वृत्तके धरातलमें गोल पृष्ठस्थ सभी बृत्तोंका परिणमन करके नयी विधि द्वारा किया है । इनके इस ग्रन्थका नाम यन्त्रराज है। इस ग्रन्थ पर मलयेन्दु सूरिकी संस्कृत टीका भी है। सुमेरु केन्द्र मानने पर भी परमा क्रान्ति तेईस अंश पैंतीस कला मानी गयी है। इसमें क्रमोत्क्रमज्यानयन, भुजकोटियाका चाप साधन, क्रान्तिसाधन, धुज्याखण्डसाधन, धुज्याफलानयन, अक्षांशसे उन्नतांश साधन, अभीष्ट वर्षके ध्रुवादिका साधन, दृक्कर्म साधन, द्वादश राशियोंके विभिन्न वृत्त सम्बन्धी गणितोंका साधन,