Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
View full book text
________________
भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
सूचक होते हैं । ऐसे शुभ लक्षणोंको देखकर फल निरूपण तो किया ही गया है । पर इन शुभ लक्षणों का गणित द्वारा परिणाम निकाल कर सूक्ष्म फलादेशका कथन भी किया है। शंख के चिह्नका गणित दीघ्र वृत्तके अनुसार निकाला गया है ।
रेखाओंका विचार
३००
हस्तपाद और ललाटकी रेखाओंका सिद्धान्त बहुत विस्तृत है । हस्त रेखाओंमें आयु या भोग रेखा, मातृ रेखा, पितृ रेखा, ऊर्ध्व रेखा या भाग्य रेखा, मणिबन्ध रेखा और शुक्र निबन्धिनी रेखाएँ प्रधान हैं । जो रेखा कनिष्ठा अंगुलिसे आरम्भ कर तर्जनी के मूलाभिमुख गमन करती है, उसकी संज्ञा आयु रेखा है । कुछ आचार्य इसे भोग रेखा भी कहते हैं । भोग रेखाका मध्यममान एक सौ बीस वर्ष माना गया है । यह रेखा छिन्न-भिन्न न हो, सुस्निग्ध, सरल और स्पष्ट रूपमें तर्जनी तक व्याप्त हो तो पूर्ण आयु होती है । कनिष्ठा अंगुलिके मूलसे अनामिका मूल तक इसके विस्तृत होनेपर ६२ वर्षकी आयु मानी जाती है । इस रेखाको जितनी क्षुद्र रेखाएँ काटती हैं उतनी ही आयु कम हो जाती है । इस रेखाके छोटी और मोटी होनेपर भी व्यक्ति अल्पायु होता है । इस रेखा के श्रृंखलाकार होने से व्यक्ति लम्पट और उत्साहहीन होता है । यह रेखा जब छोटी-छोटी रेखाओंसे कटी हुई हो तो व्यक्ति जीवन में असफल रहता है । इस रेखा के मूल में बुध स्थान में शाखा न रहने से सन्तान नहीं होती । शनि स्थान के निम्न देशमें मातृ रेखाके साथ इस रेखा के संयुक्त हो जानेपर अकस्मात् दुर्घटना द्वारा मृत्यु होती है । यदि यह रेखा श्रृंखलाकार होकर शनि स्थान में मिल जाए तो व्यक्ति की हत्या किसी स्त्री प्रेमके कारण होती है । शनि स्थानके दक्षिण में मातृ रेखाके मिलनेसे धनके कारण व्यक्ति की हत्या की जाती हैं । ज्ञान प्रदीपिकामें गणित द्वारा आयु रेखापरसे व्यक्तिकी आयुका परिज्ञान प्राप्त किया गया है ।
आयु रेखा पार्श्व में जो दूसरी तर्जनीके निम्न देशमें गयी है, उसकी संज्ञा मातृ रेखा है । यह रेखा शनि स्थान या शनिस्थानके नीचे तक लम्बी हो तो अकाल मृत्यु होती है । जिस व्यक्तिकी मातृ और पितृ रेखाएँ मिलती नहीं, वह विशेष विचार करने में असमर्थ रहता है और कार्य में शीघ्र ही प्रवृत्त हो जाता है । इस प्रकारकी रेखावाला व्यक्ति आत्माभिमानी, अभिनेता, सत्परामर्शदाता और घनिक होता है तथा इस प्रकारके व्यक्तिको पैतृक सम्पत्ति की प्राप्ति होती है । यदि यह रेखा टूट जाए तो मस्तक में चोट लगती है तथा व्यक्ति अंगहीन होता है। यह रेखा लम्बी हो और हाथमें अन्य बहुत सी रेखाएँ हों तो व्यक्ति विपत्तिकालमें आत्मदमन करनेवाला होता है। इस रेखाके मूलमें कुछ अन्तर पर यदि पितृ रेखा हो तो मनुष्य परमुखापेक्षी और डरपोक होता है । मातृरेखा सरल न होकर बुध के स्थानाभिमुखी हो तो वाणिज्य-व्यवसाय में लाभ होता है । यदि यह रेखा कनिष्ठा और अनामिका बीचकी ओर आवे तो शिल्प द्वारा उन्नति होती है । यह रेखा रविके स्थान में जाए तो शिल्पो, विद्यानुरागी और यशः प्रिय व्यक्ति होता है । यह रेखा भाग्य रेखाको छेदकर शनि स्थानमें जाती है तो मस्तक में चोट लगने से मृत्यु होती है । आयु रेखाके समीप इसके होनेसे श्वास रोग होता है । इस रेखाके ऊपर यव चिह्न होनेसे विद्वान् और त्यागी होता है । मातृ और पितृ दोनों रेखाओं के अत्यन्त छोटे होनेसे व्यक्ति अल्पायु होता है ।