Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित हुत दर्शन-इस दर्शनमें पुरुष प्रकृतिके सम्बन्धके कारण विकृतावस्थाको धारण कर लेता है । इस विकृत पुरुषमें ही जन्म-जन्मान्तरके संस्कार संचित रहते हैं। पूर्व तथा वर्तमान जन्मके संस्कारोंके कारण विकृत पुरुष स्वप्न देखता है । अतः स्वप्नका सम्बन्ध निर्लेपी पुरुषसे न होकर प्रति मिश्रित पुरुषके भूत, वर्तमान और भावी जीवनसे है।
विशिष्ठात--इस मान्यतामें बताया गया है कि संचित, प्रारब्ध, काम्य और निषिद्ध इन चार प्रकारके कर्मों में से संचित और प्रारब्ध कर्मों के अनुसार प्राणियोंके स्वप्न आते हैं । स्वप्नका सम्बन्ध ब्रह्मके अंशभूत जीवसे है । इस दर्शनकी मान्यताके अनुसार प्राणी संचित कर्मोंका फल भी स्वप्नमें भोग सकता है। पौराणिक आख्यानोंमें महाराज सत्य हरिश्चन्द्रका उदाहरण भी इसी प्रकारका है, जिन्होंने स्वप्न में अनेक भावोंके संचित "डोमके यहाँ विक्रय होनेके" फलको प्राप्त कर लिया था।
आयुर्वेदिक विचारधारा'--इस मान्यताके अनुसार मनके बहनेवाली नाड़ियोंके छिद्र जिस समय अति बली तीनों दोषोंसे (वात, पित्त और कफ) परिपूर्ण हो जाते हैं उस समय प्राणियोंको शुभ और अशुभ स्वप्न आते हैं। जिस समय प्राणी न अत्यन्त सोता है और न जागता हो अर्थात अद्ध निद्रित अवस्थामें इन्द्रियोंके अधिपति मनके द्वारा सफल और निष्फल अनेक प्रकारके स्वप्न देखता है । इस मान्यतामें बताया गया है कि व्यक्तियोंको नाना प्रकारके रोगोंकी स्वप्न द्वारा चेतावनी दी जाती है । चरक और सुश्र तके आधारपरसे कुछका उल्लेख किया जाता है। . जो मनुष्य स्वप्नमें कुत्ता, ऊंट और गधेपर चढ़कर दक्षिण दिशाको जाता है, उसको राजयक्ष्मा; जो स्वप्न में लाख और लाल वस्त्रके समान आकाशको देखता है, उसे रक्तपित्त; जिसे स्वप्नमें शूलरोग, अफरा, आँतोंका रोग, अत्यन्त दुर्बलताका अनुभव हो और नखोंका रंग विकृत मालूम हो, उसे गुल्म; जो स्वप्न में शरीरमें घाव देखे, नग्न हो घृत लगावे, ज्वाला रहित अग्निमें हवन करे और हृदयमें कमल प्रकट हुआ देखे, उसे कुष्ठरोग; जो स्वप्नमें चाण्डाल, कर्मकार आदि नीच वर्णवाले व्यक्तियोंके साथ घृत, तैल आदि स्निग्ध पदार्थोंका पान करे, उसे मधुमेह; जो स्वप्न में अनेक व्यक्तियों सहित नाचता हुआ जलमें निमग्न होता देखे, उसे उन्माद; स्वप्नमें कुत्तेसे प्रेम करते हुए देखनेसे ज्वर; राक्षसोंके साथ प्रीति करते हुए देखनेसे अपस्मार; बन्दरोंके साथ प्रीति करते हुए देखनेसे गुप्त रोग; स्वप्नमें चनेकी तिल मिली पूड़ी खानेसे मस्तक और छदि रोग; स्वप्नमें मार्ग चलता हुआ देखनेसे श्वास; स्वप्नमें हल्दी मिले पदार्थका सेवन करता हुआ देखनेसे पाण्डु रोग और स्वप्नमें लाल तथा काले वस्त्रवाली स्त्रीके साथ वार्तालाप करनेसे भयानक रोग होते हैं । वाग्भट्ट ने बताया है कि जिस मनुष्यकी वात प्रकृति होती है, वह स्वप्नमें आकाशमें भ्रमण करना, उड़ना तथा काले रंगकी वस्तुओंको और प्रचण्ड पवन-आँधी आदि देखता है । पित्ताधिक प्रकृति वाला सोने या रत्नोंकी मालाओं, सूर्य, अग्नि और बिजली आदि प्रकाशमान पदार्थोंको देखता है । कफाधिक प्रकृति
१. मनोवहानां पूर्णत्वाद्दोषरतिबलैस्त्रिभिः
स्रोतसां दारुणान्स्वप्नान्काले पश्यत्यदारुणान् । विशेष जानने के लिये देखो वाग्भट्ट शारीरस्थान ६वां अध्याय