Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
View full book text
________________
ज्योतिष एवं गणित
बतलाया है कि वहुधा स्वप्न अत्यन्त विकृत रूपमें हमारे सामने आते हैं और अर्थहीन जान पडते हैं, पर मनोविज्ञानके पण्डित उस अर्थहीनतामें भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अर्थ खोज निकालते हैं । प्रत्येक स्वप्न हमारी किसी आशा या आशंकाका रूपक होता है। हमारी गुप्तभावना स्वप्नमें यथार्थ रूपमें अपनेको प्रकट न करके गुप्तवेशमें नाना रूपकोंके जाल बिछाकर व्यक्त होती है । मनुष्य अपने स्वभावगत असमर्थताको क्षति पूर्ति जिन-जिन रूपोंमें करता है, उसके स्वप्नोंकी भी गणना उन्हीं में की जा सकती है। क्योंकि स्वप्नोंके द्वारा वह अपनी उन इच्छाओंकी पूत्ति करता है जिन्हें वह वास्तविक जगत्में पूरा नहीं कर पाता । स्वप्न वास्तवमें मनुष्यकी अन्तर्भावनाओंके दर्पण होते हैं। किसी मनष्यके भीतरकी सच्ची बात जाननेकी आवश्यकता हो तो उसके स्वप्नोंको जान लेना ही यथेष्ट होगा। एक भारतीय विद्वान्'ने एक जगह लिखा है कि मनुष्य के भीतर कमसे कम दो व्यक्तित्व सदा, सब समय वर्तमान रहते हैं । उसका एक व्यक्तित्व उसे अपनी स्वाभाविक इच्छाओंकी पूत्तिके लिए प्रेरित करता है और दूसरा व्यक्तित्व समाजके कड़े नियमोंके पालनेके लिये उत्कण्ठित रहता है। पहला व्यक्तित्व उसको अन्तभूमिमें सोई हुई अवस्थामें दबा पड़ा रहता है, पर दूसरा व्यक्तित्व (ममाजके शासनचक्रको मानकर चलनेवाला व्यक्तित्व) सब जगह जागता रहता है, यहाँ तक कि हमारी निद्रित अवस्थासे वह पुलिसके चौकीदारकी तरह चौकन्ना रहता है । जब स्वप्न देखते हैं तब हमारे दोनों व्यक्तित्व सचेष्ट रहते हैं। दोनों व्यक्तित्व एक दूसरेपर कड़ी निगाह रखते हैं । पुलिसका काम करनेवाला व्यक्तित्व स्वाभाविक इच्छाओंकी ओर झुकनेवाले व्यक्तित्वको धर पकड़ने के लिये तैयार रहता है, पर दूसरा व्यक्तित्व उस पुलिस प्रहरीको धोखा देकर अपनी सहज इच्छाओंको वेश बदल कर चरितार्थ कर लेता है। यही कारण है कि हमारे स्वप्न हमें अर्थहीन और विचित्र जान पड़ते हैं पर वे वास्तवमें अर्थहीन नहीं होते, बल्कि हमारे भीतर वर्तमान पुलिस प्रहरीको धोखा देनेके लिये निराले रूपक-मय रूप धारण कर लेते हैं । इस प्रकार हमारे मूल व्यक्तित्वकी आकाक्षाएं पूरी होती हैं । जेम्स एलेन लिखते हैं कि मानवके अन्तस्तल में जो सद् बा असद् इच्छाएँ वर्तमान रहती हैं वे स्वप्नमें आती है। कल्पनाओंके संसारका दूसरा नाम स्वप्न उन्होंने रक्खा है । लिलीने स्वप्नका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए लिखा है कि जितने भी ऊँचे स्वप्न देखनेवाले हुए हैं या जिनके ऊंचे मन्तव्य रहे हैं वे संसारके मुक्तिदाता हुए हैं। स्वप्न मनुष्यको अन्तर्भावनाओंके सच्चे प्रतीक हैं । जी० एच० मिलर सा० ने अपनी Dreams Scientific पुस्तकमें लिखा है कि "A dream is an event transpiring in that world belonging to the mind when the objective senses have withdrawn into rest or oblivion.
Than the syiritual man is ling alone in the future or ahead of cbjeetiu lifc and consequently lives man's firs developing conditions in a way that enables waking man to shape his actions by warnings, so as to make life a perfect existence". अर्थात् सुषुप्तावस्थामें मस्तिष्कका आन्तरिक
१. दैनिक जीवन और मनोविज्ञान । २. Asyns Thinkett P. 18. H, H. Sayce P, 33.