Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित
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मंगल, मंगल-बुध, बुध-गुरु, गुरु-शुक्र, शुक्र-शनि ग्रहोंकी युतियोंके फल भी आये हैं। विसंयोगियोंमें रवि-चन्द्र-मंगल, चन्द्र-मंगल-बुध, मंगल-बुध-गुरु, गुरु-शुक्र-शनिके फलादेशोंका निरूपण आया है । चतुस्संयोगियोंमें रवि-चन्द्र-मंगल-बुध, चन्द्र-मंगल-बुध-गुरु, मंगल-बुध-गुरु-शुक्र, बुध-गुरु-शुक्र-शनि, गुरु-शुक्र-शनि-रविके स्थान विशेषके आधारपर संयोगी फलोंका कथन किया गया है । इस संयोगी विचारोंको अवगत करनेके लिए निम्नलिखित नियमोंकी जानकारी अपेक्षित है--
१-स्थान-सम्बन्ध २-दृष्टि-सम्बन्ध ३-राशि-स्वामियोंका सम्बन्ध ४-बलाबल-सम्बन्ध
५-मित्र-शत्रुत्व-सम्बन्ध उक्त नियमोंके अनुसार ग्रह युतिका विचार करनेसे जातक सम्बन्धो फलादेशका ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।
ग्रह दृष्टिके सम्बन्धमें सामान्य नियमोंके विवेचन प्रसंगमें हो लिया जा चुका है। षड्बल विचार
जातक-तत्वका प्रमुख अवयव षड्बल है। बल-विचारके अभावमें जातक-तत्वका पूर्ण विवेचन सम्भव नहीं। अतएव ग्रहोंके बलाबलपर विचार करना परमावश्यक है। जातक शास्त्रमें ग्रहोंके छः प्रकारके बल बतलाये गये हैं:-(१) स्थान बल, (२) दिग्बल, (३) कालबल (४) चेष्टाबल (५) नैसर्गिक बल और (६) दृग्बल ।
___ स्थान बलमें उच्चबल, युग्मायुग्म बल, सप्तवगैक्य-बल, केन्द्र-बल और द्रेष्काण-बल ये पाँच सम्मिलित हैं। इन पांचों बलोंका योग करनेसे स्थानबल होता है। सामान्यतः ग्रह अपनी उच्चराशि, स्वक्षेत्र, मूलत्रिकोण, स्वनवमांश या अतिमित्रके क्षेत्रमें रहनेसे स्थानबली होता है।
शनिमेंसे लग्नको, सूर्य और मंगलमेंसे चतुर्थ भावको, चन्द्रमा और शुक्रमेंसे दशम भावको, बुध और गुरुमेंसे सप्तम भावको घटा कर शेषमें छः राशिका भाग देनेसे ग्रहोंका दिग्बल आता है । यदि शेष छः राशिसे अधिक हो तो बारह राशियोंसे घटाकर तब भाग देना चाहिए । दूसरा नियम यह है कि शेषकी विकलाओं में १०८०० का भाग देनेसे कला विकलात्मक दिग्बल होता है ।
बुध और गुरु लग्नमें रहनेसे, शुक्र और चन्द्रमा चतुर्थमें रहनेसे, शनि सप्तम भावमें रहने से एवं सूर्य और मंगल दशम स्थानमें रहनेसे दिग्बली होते हैं। अतः लग्न पूर्व, दशम, दक्षिण, सप्तम पश्चिम और चतुर्थाभाव उत्तर दिशामें माने गये हैं। इसी कारण इन स्थानोंमें ग्रहोंका रहना दिग्बल कहलाता है।
बुध और गुरु लग्नमें रहनेसे, शुक्र और चन्द्रमा चतुर्थमें रहनेसे, शनि सप्तम भावमें रहनेसे एवं सूर्य और मंगल दशम स्थानमै रहनेसे दिग्बली होते हैं । यतः लग्नपूर्व, दशम