Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित विष्णुचन्द्र, प्रभाकर' आदि अनेक आचार्योंके वचन संग्रहोत है। अत: यह निर्विवाद सिद्ध है कि आचार्य ऋषिपुत्रका समय शक सं० की ९ वीं शताब्दीके पहले है; पर विचारणीय बात यह है कि कितना पहले माना जाय ।
- आचार्य ऋषिपुत्रके समय निर्णयमें भारतीय ज्योतिषशास्त्रके संहिता सम्बन्धी इतिहाससे बहुत सहायता मिलती है, क्योंकि यह परम्परा शक सं० ४०० से विकसित रूप में है । वराहमिहिरने, जिनका समय लगभग शक सं० ४२७ के माना जाता है, बृहज्जातकके २६ वें अध्यायके ५ वें पद्यमें कहा है कि-"मुनिमतान्यवलोक्य सम्यग्धोरां वराहमिहिरो रुचिरां चकार ।" इससे स्पष्ट है कि वराहमिहिरके पूर्व संहिता और होरा सम्बन्धी परम्परा वर्तमान थी। इसीलिये उन्होंने बृहज्जातकमें मय, यवन, विष्णुगुप्त, देवस्वामी२, सिद्धसेन', जीवशर्मा, सत्याचार्य आदि कई महर्षियोंके वचनोंका खण्डन किया है। संहिताशास्त्रकी प्रौढ़ रचनाएँ यहींसे आरम्भ हुई हैं । वराहमिहिरके बाद कल्याणवर्माने शक सं० ५०० के आस-पास सारावली नामक होरा ग्रन्थ बनाया; जिसमें इन्होंने वराहमिहिरके समान अनेक आचार्योंके नामोल्लेखके साथ कनकाचार्य और देवकीतिराजका भी उल्लेख किया है। संहिता संबंधी अनेक बातें सारावलीमें पाई जाती हैं। इस काल में अनेक जैन और जैनेतर आचार्योने संहिता शास्त्रकी प्रौढ़ रचनाएँ स्वतन्त्र रूपमें की हैं। इन रचनाओंकी परस्पर तुलना करनेपर प्रतीत होगा कि इनमें एकका दूसरे पर बड़ा भारी प्रभाव है । उदाहरणके लिये गर्ग, वराहमिहिर और ऋषिपुत्रके एक-एक पद्य नीचे उद्धृत किये जाते हैं:
शशशोणितवर्णाभो यदा भवति भास्करः तदा भवन्ति संग्रामा, घोरा रुधिरकर्दमाः॥
-गर्ग शशरुधिरनिभे भानो नभःस्थले भवन्ति संग्रामाः ।
-वराहमिहिर ससलोहिवण्णहोवरि संकुण इत्ति होइ णायव्वो। संगामं पुण घोरं खग्गं सूरो णिवेदेई ॥
-ऋषिपुत्र इसी प्रकार चन्द्रमासे प्रतिपादित फलमें भी बहुत स्थलोंमें समानता मिलती है। ऋषिपुत्रके निमित्त शास्त्रका चन्द्रप्रकरण संहिताके चन्द्राचार अध्यायसे लगभग मिलता जुलता है। इस प्रकारके फल प्रतिपादनकी प्रक्रिया शक सं० की ५-६वीं शताब्दीमें प्रचलित थी। वृद्धगर्गके निम्न पद्य निमित्तशास्त्रकी निम्न गाथाओंसे एकदम मिलते हैं
१. यह प्रतिष्ठाकल्पके रचयिता प्रभाकर देव मालूम पड़ते हैं । २. यह आचार्य जैन मालूम पड़ते हैं। मुझे सन्देह है कि यह प्रसिद्ध देवसेन स्वामी ही तो
नहीं हैं ? ३. यह आचार्य नमस्कार माहात्म्यके रचयिता मालूम पड़ते हैं ।