Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 398
________________ ज्योतिष एवं गणित ३५३ 'गीर्वाणगी गुम्फितो मनोरमविविधच्छन्दोनिबद्धः सपादशतपद्यप्रमितो गणिततिलकसंज्ञकोऽयं ग्रन्थः श्रीधराचार्यकृत त्रिशत्याधारेण निर्मित इत्यनुमीयते कतिपयानां पद्यानां साम्यावलोकनेन । इन पंक्तियोंसे स्पष्ट है कि श्रीपतिने इनके गणितसारके अनुकरणपर ही अपने गणित ग्रन्थ की रचना की है। श्री सिंहतिलकसूरिने अपनी तिलक नामक वृत्तिमें गणितसारका आधार लेकर गणित विषयक महत्ताओं का प्रदर्शन किया है । इन्होंने अपनी वृत्तिमें श्रीधराचार्यके सिद्धान्तोंको दूध - पानी की तरह मिला दिया है । श्रीधराचार्यके एक बीज गणितकी सूचना भास्कराचार्यने दी है, परन्तु वह अभी तक मिला नहीं है। मेरा विश्वास है कि दक्षिण के किसी जैन ग्रन्थागारमें वह अवश्य होगा । यदि सम्यक् अन्वेषण किया जाय तो उसके मिलनेपर बीज गणितके विद्वानोंके सम्मुख अनेक प्राचीत सिद्धान्त आ जायँगे, जिनसे भारतीय गणितकी अनेक समस्याओंकी उलझन सुलझ जायगी। क्योंकि आधुनिक बीजगणितके एक वर्ण मध्यमाहरण में 'श्रीधर मैथड' के नामसे कुछ नियम पाये जाते हैं । यह आचार्य केवल गणितके हो मर्मज्ञ नहीं थे, किन्तु त्रिस्कन्ध ज्योतिष पण्डित थे । संहिता, होरा और सिद्धान्त इन अंगोंपर इनका पूर्ण अधिकार था । जातक विषयको स्पष्ट करने के लिये इन्होंने कन्नड़ भाषा में जातक तिलककी रचना की है । इस ग्रन्थका विषय नामसे ही स्पष्ट है । यत्र-तत्र उपलब्ध ग्रन्थके सारांशको देखनेसे मालूम होता है कि बृहज्जातकके समान ही इसका विषय विस्तृत है तथा जन्मकुण्डलीके फलादेशका कथन बहुत अनूठेढंगसे किया गया है । कन्नड़ लीलावती नामक एक ग्रन्थकी सूचना भी मिलती है, इस ग्रंथ में प्रधानरूपसे अङ्कगणित और मेन्स्यूरेशनके गणितका प्रतिपादन किया गया है । ज्योतिज्ञ निविधि—यह ज्योतिष शास्त्रका महत्वपूर्ण ग्रन्थ है । इसमें करण, संहिता और मुहूर्त इन तीनों विषयोंका समावेश किया गया है । यद्यपि मेरे समक्ष इसकी अधूरी प्रति है, लेकिन जितना अंश है, उतना विशेष उपयोगी है । इस ग्रन्थकी रचना शैली गणितसार अथवा त्रिंशतिकाके समान है। दोनों ग्रन्थोंके देखनेसे प्रतीत होता है कि ज्योतिर्ज्ञानविधि गणितसारसे पहलेकी रचना है। वैसे उपलब्ध ग्रन्थ अत्यन्त भ्रष्ट है, अशुद्धियोंसे भरा पड़ा है । इसके प्रारम्भ में साठ सम्वत्सर, तिथि, नक्षत्र, वार, योग, राशि, एवं करणोंके नाम तथा राशि, अंश, कला, विकला, घटी, पल आदिका वर्णन किया गया है। दूसरे परिच्छेद में मास और नक्षत्र ध्रुवाका विस्तार सहित विवेचन है । इस प्रकरणके प्रारम्भ में शक संवत् निकालनेका एक सुन्दर करण सूत्र दिया है षष्टिः षोडशगुणितं व्यपगतसम्वत्सरश्च सम्मिश्रम् । नवशून्याब्धिसमेतं शकनुपकालं विजानीयात् ॥ १. देखें गणित तिलक, पृ० ७२ । २. देखें गणित तिलक वृति, पृ० ४, ९, ११, १७, ३९ आदि । ४५

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