Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 441
________________ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान उदाहरण-पद : ९, चय ८, आदि ४. {१४९ - ४९) x ८+ (४९४४)} + (२ ४४९) = ९६०४ संकलित धन उपपत्ति(क) से स= {(ग १) च + २५ = (ग x च - च + मु + मु) = ग२x च-गx च + मुमु + मुग = गरे ४ च - ग X च + ग X मु, मृग = (ग२ – गोच' + ग X मु + मु x ग ७ सूत्र--आदि धनके निकालनेका नियम पददलहिदसंकलिदं इच्छाए गुणियदचयसंजुत्तं । रूऊणिच्छाधियपदचयगुणिलं अवणियद्धिदे आदी ॥२-८३ अर्थ-संकलित धनमें पदके आधेका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसमें इच्छा-गुणित चयको जोड़ देना चाहिए । इस योगफल राशिमें चय गुणित पद तथा एक कम इच्छा राशिको घटानेपर जो अवशेष आवे उसका आधा कर देनेसे आदिका प्रमाण होता है । गणित सूत्र {(संकलित धन :-) + (चय x इच्छा) - (इच्छा - १ + पद x चय)} . २ उदाहरण-संकलित धन ९६०४, पद ४९, चय ८, इच्छा ७ ::{(९६०४ : ४३) + (८४७) - (७ - १ +.४९४८) _ उपपत्ति (क) से स= {(ग - १)च + २मु}} 7 .. (ग- १)च + २ मु = स’ .. २मु = (स: )- (ग- १)च __-(स )-(इ-इ- १ + ग)च

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