Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 443
________________ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान उदाहरण-संकलित धन ४४२०, चय ८, आदि २९२ । उपपत्ति ..' (६x४२०) + (२९२-६)_ (२९२-६ : १) = १३ पद (क) से स = [(ग- १) च+ २मा गचाम ، ५ x स ग व ग न , मगच (ई से गुणा करने पर - (ग) + २ ४ गम (-) + (-1) - (-1) - (+-)-F-5) دوا سه سه له ...क +२ क ख+ गच च स + २ MAKIAKIA .. गच + (-) = "5 x स + (-1) .. (गच - ४ च स + (-४) -(--) -इस + (-२) - Y - चरि (ख) ग-( इ स + (-बार") म-परि १० सूत्र पद या गच्छ निकालनेका अन्य नियम दुचयहदं संकलिदं चयदलवदणंतरस्स वग्गजुदं । मूलं परिमूलूणं चयभजिद होदि तं तु पदं ॥ २-८६ अर्थ-संकलित धनको द्विगुणित चयसे गुणाकर गुणनफलमें चयके अदभाग और मुख के अन्तररूप संख्याके वर्गको जोड़कर उसका वर्गमूल निकालनेपर जो संख्या प्राप्त हो उसमेंसे पूर्वमूलको घटाकर शेषमें चयका भाग देनेपर लब्ध प्रमाण पद या गच्छ होता है । गणित सूत्र{.'(चय x २४ सर्वधन) + मुख - - (मुख - ३}चय = पद गणित-चय ८, सर्वधन ४४२०, मुख २९२ :V(२४८४४४२०) + (२९२-३)२-(२९२ -१ ८ = १३ पद चय चय

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