Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित
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पदम), सत्रहवां क्षोणी, अठारहवां महाक्षोणी, उन्नीसवां शंख, बीसौं महा-शंख, इक्कीसवां क्षित्या, बाईसा महाक्षित्या, तेईसवां क्षोभ और चौबीसवां महाक्षोभ कहलाता है ।'
जैन लेखकोंने संख्याओंके स्थानमानका प्रतिपादन कई प्रकारसे किया है । वे आदिअन्तके अंकोंका कथन कर अनन्तर मध्यवर्ती अंकोंको व्यक्त करते हैं । प्रधानतः अभिव्यक्तीकरणके इन प्रकारोंको निम्नलिखित रूपोंमें प्रयुक्त किया जा सकता है
१. दाहिनी ओरसे अंकोंका प्रतिपादन तथा समस्त अंकोंके सन्निवेशसे स्थानमान विषयक एक संख्याको स्थितिका अंकन । व्यतिक्रम मान द्वारा संख्या-निरूपण ।
२. स्थानमानके अनुसार अंकोंका प्रतिपादन ।
३. आदि और अन्तके अंकोंका कथन करनेके उपरान्त मध्यवर्ती तुल्य अंकोंका एक साथ निरुपण ।
४. शब्दों द्वारा अंकोंका कथन करते हुए स्थान-क्रमानुसार संस्थाओंका सन्निवेश । ५. किसी संख्याके वर्ग या धन प्रमाणका कथन कर अन्य संख्याका संसूचन । उपयुक्त स्थानमानकी अभिव्यज्नाके उदाहरण निम्न प्रकार है :
धवलटीका ३ जिल्द पृ० ९९ पर उद्धृत गाथा ५२ में विपरीत क्रम संख्याका निरुपण आया है । यथाचौंसठ, छह सौ, क्यासठ हजार, छ्यासठ लाख तथा चार करोड़-४६६६६६६४ । (२) अडकोडिएयलक्खा अठ्ठसहस्सा य एयसदिगं च । पण्णत्तरि वण्णाओ पइण्णयाणं पंमा० तु ॥
___ गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गाथा ३५० अर्थात् : आठ करोड़, एक लाख, आठ हजार, एक सौ पचहत्तर- ८०१०८१७५ (३) सत्तादो अलैंता छण्णवमज्झा य संजदा सव्धे।
-गोम्मटसार (जीवकाण्ड) गाथा ६३२ अर्थात् : प्रारम्भमें ७ मध्यमें छह बार ९ तथा अन्त में ८ ।
७१९९९९९८ ।
१. गणितसार संग्रह, जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, सन् १९६३ ई०, १।६३-६८
पृ०८ इस स्थान मानके लिए भास्कराचार्य के निम्न पद्य तुलनीय हैएकदशशतसहस्त्रायुतलक्षप्रयुतकोटयः क्रमशः । अर्बुदमब्जं खर्वनिखर्वमहापद्मशङ्कवस्तस्मात् ।। जलाधिश्चान्त्यं मध्यं परामिति दशगुणोत्तराः संज्ञाः । संख्यायाः स्थानानां व्यवहारार्य कृताः पूर्व ।-लीलावती, मास्टर खेलाडीलाल एण्ड सन्स, वाराणसी, सं० १९९४ पृ. ३ इन पद्योंसे स्पष्ट है कि १६ स्थानों तक ही संख्याका निरूपण किया है।