Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 431
________________ भारतीय संस्कृति के विकास में जैन वाङ्मयका अवदान अग त्रिभुज, अग, भुज और कोटि हैं, क ग कर्ण है तथा 4 काग समकोण है; अ समकोण बिन्दुसे क ग वर्णके ऊपर अ म लम्ब गिराया है । . अ करे = क ग क म क म; अगर क ग ग म C = क ग .. अ क + अग े = कग, कम + कग, ग म क ग ( कम + गम) = क ग = क गरे √क न े = / अ क + अ गरे √भु' + को? = V,क े; क — भुरे = /कोर; : भुर क्षेत्रफल — ३८६ =3 अ इ उ त्रिभुजमें छोटी भुज = भु, बड़ी भुज = भु, भूमि = भू अ क = लम्ब, छोटी, * = q - { x2 - - = - { x + − = (12 = (२ १ भू भू + = - आबाधा इक = भू – (भु-भुं) २ भू - (y 2 − y 2 ) 2 } (भु भु २ भू - - - (†2 २ भू - — (भू + भु) 2 - भु‍ २ भू भूरे+भुरे - भुरे २ भू ) a'2)) } × = (भू भु भुं) - (1 + * + *) × ( 1 + 7 + (भू+भु X २ = X ) X क { x − (y2 - 42-*2)) } २ भू (भुं‍ – (भू - भु) 2 – × (11) (२.भू.स - भूक *-* ) (भू + भु+भुं ) x भू + भु–भुं) • २ भू (भू + भु + भुं) x (भूं + भु–भुं) (भू + भुं – भु) (भु + भुं—भू) X. x x २ २ २ २ = ) 31 २ भू (भुं + भू-भु) X (भुं + भु-भू) २ भू उ * - * ) × (1+1+1 − ) × (1+1+1 − q ) भु _ X २ २ इसका वर्गमूल त्रिभुजका क्षेत्रफल होगा । यों तो उपर्युक्त नियम' को प्रायः सभी गणितज्ञोंने कुछ इधर-उधर करके माना है पर वासनागत सूक्ष्मता और सरलता जैनाचार्यों की महत्त्वपूर्ण है । वृत्तक्षेत्रके क्षेत्र में प्राचीन गणितमें जितना कार्य जैनाचार्योंका मिलता है उतना अन्य लोगोंका नहीं । आजकलकी खोजमें 'वृत्त'की जिन गूढ़ गुत्थियोंको मुश्किलसे गणितज्ञ सुलझा रहे हैं, उन्हींको जैनाचार्योंने संक्षेपमें सरलता पूर्वक अंकोंका आधार लेकर समझाया है । वृत्तके सम्बन्ध में जैनाचार्योंका प्रधान कार्य अन्तः वृत्त, परिवृत्त, बाह्यवृत्त, सूत्रीव्यास, वलयव्यास, समकोणाक्ष, केन्द्र, परिधि, चाप, ज्या, बाण, तिर्यक् तथा कोणीय नियामक, परिवलय व्यास, १. त्रिभुजचतुर्भुज बाहुप्रति बाहुसमासदलहतं गणितम् । नेमेर्भुजयुत्यर्थं व्यासगुणं तत्फलार्थमिह बालेन्दोः ।। - गणितसार संग्रह - क्षेत्राध्याय श्लो० ७ १० १८२

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