Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान मुख, चय, गच्छ और संकलित धनोंका प्रमाण निकालनेके लिए निम्न सूत्र आये हैं । १. सूत्र
चयहदमिच्छृणपदं रूणिच्छाए गुणिदचयजुत्तं ।
दुगुणिदवदणेण जुदं पददलगुणिदं हवेदि संकलिदं ॥२६४ अर्थ-इच्छासे हीन गच्छको चयसे गुणा करके उसमें एक कम इच्छासे गुणित चयको जोड़कर प्राप्त हुए योगफलमें दूने मुखको जोड़ देनेके पश्चात् उसको गच्छके आधे भागसे गुणा करने पर संकलित धनका प्रमाण होता है। .
अंक उदाहरण-गच्छ ११, इच्छा २, चय ८, आदि २०५ । = ११ -२ = ९४८- ७२,२-१ = १४८,७२ + ८-८०,२०५४ २ = ४१०, ४१० + ८० = ४९०, ११ : २ = ११४४९० = २६९५ संकलित धन । उपपत्तिमान लिया स = s = सर्वधन, मु = a = मुख, च = b = चय, इ = c = इच्छा, ग = n = गच्छ मु मु च म च मु
मु ग च। स = a + (a + b) + (a + 2b) + a+ 3b + ...... + { a+ (n - 1) b}
s = { a + (n - 1) b } + { a+ (n- 2) b} + { a+ (n + 3) b } +
{a+ (n-4) b } + - +a
:::25 = { 2a + (n-1) b } + { 2a + (n- 1) b} + {2a + (n-1) b}
+ {2a + (n- 1) b + .... + {2a + (n- 1) b}
={2a+ (n- 1) b} n..............(क)
ग इ इ च मु ग -{(n-c+c- 1) b + 2a} n
={ (n-c) b + (c- 1) b+ 2a} n
ग इच इ च मु ग : स = {(n-c) b + (c - 1) b + 2a} n
..स - {(ग-इ) च + (इ - १) च + २मुह ..............(ख)