Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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३८८ भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
इसी प्रकार अरे का दृष्टाङ्क वर्ग = (अ) इ = अ इ घाताङ्क के अनुसार (१) क - + व (२) मन-म- न (३)(म) = अमन
बीजगणितके एकवर्ण समीकरण सिद्धान्तके आविष्कर्ता, अनेक विद्वानोंने जैनाचार्य श्रीधरको माना है । यद्यपि इनका नियम परिष्कृत एवं सर्वव्यापी नहीं है फिर भी प्राचीनताके स्यालसे महत्त्वपूर्ण है। श्रीधराचार्यके नियमानुसार एक अज्ञात राशिका मान निम्नलिखित प्रकारसे निकाला जाता है
__ कब:ख ब = ग । इस गणितमें क, ख, ग, ये ज्ञात राशियां और ब अज्ञात राशि है । कियामें श्रीधराचार्यने समगुणन और भजनका नियम निकाल कर इस प्रकार रूपान्तर किया है- +9 ब = दोनों राशियोंमें समजोड़ देनेसे भी समत्व रहेगा।
-+-४ ग क ! यहाँ दोनों पक्षों क घटा दिया तो
..ख+ ४ ग क ख र+४ ग क .
२क ___इस प्रकार जैनाचार्योने अज्ञातराशिका मान निकाला है। गणितसारसंग्रहमें अनेक बीजगणित सम्बन्धी सिद्धान्तोंका प्रतिपादन किया गया है। यहाँ उदाहरणार्थ मूलधन, व्याज, मिश्रधन और समय निकालनेके सम्बन्धमे कुछ महत्वपूर्ण सूत्र दिये गये हैं। मूलधन-स, मिश्रधनम, समय-ट, व्याज-इ,
म= स.x आ १. (i) स-1
१+ईxexई । आम-स
ट+स
(i) स = 2+ १
टर्स
.
(iii) आ = अनेक प्रकारके मूलधन
२. वा Xट १ मा
ईxस
Xट
(RV म - Xxxx आ + - म ।
रम=स+ट
(ii) संx,xम
ट,xट, + स२४ट+स.xट+........ = आ, १. छट्वग्गस्स उवरि सत्तमवग्गस्स हेढदोत्ति वुत्ते अत्थवत्तीण जोइत्ति.. "धवलाटोका
जिल्द ३ पृ. २५३