Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित अर्थात्-असंख्यातवा भाग अधिक सम्पूर्ण जीवराशिका सम्पूर्ण जीवराशिके उपक्ति वर्ग में भाग देनेपर असंख्यातवों भागहीन सम्पूर्ण जीवराशि आती है । उत्कृष्ट असंख्याता संख्यातवाँ भाग अधिक सम्पूर्ण जीवराशिका सम्पूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्गमें भाग देनेपर जघन्य परीतानन्तवाँ भागहोन सम्पूर्ण जीवराशि आतो है । अनन्तवाँ भाग अधिक सम्पूर्ण जोवराशिका सम्पूर्ण जीवराशिके उपरिम वर्ग में भाग देनेसे अनन्तवा भागहीन सम्पूर्ण जीवराशि आती है।
___ उपर्युक्त राशियोंके आनयन की प्रक्रिया वितत भिन्न की है। इस भिन्नकी संसृति द्वारा उपर्युक्त राशियां निकाली जा सकती हैं। वीरसेनाचार्यने इस संदर्भ में प्राचीन गाथाएँ उद्धृत कर वितत भिन्नकी संसृति पर प्रकाश डाला है। उक्त सन्दर्भसे भिन्न सूत्र निष्पक्ष होते हैं-१. भागहारमें उसीके वृद्धि रूप अंशके रहनेपर भाग देनेसे जो लब्ध भागदार आता है, वह हानिमें रूपाधिक और वृद्धि में इसके विपरीत रूपहीन होता है ।
२. भागदार विशेषसे भागदारके छिन्नभाजित करनेपर जो संख्या आती है, उसे रूपाधिक अथवा रूपन्यून कर देनेपर वह क्रमसे हानि और वृद्धिका भागहार होती है।
३. लब्ध विशेषसे लब्धको छिन्न-भाजित करनेपर जो संख्या उत्पन्न हो, उसमेंसे एक अधिक या एक कम कर देनेपर वह क्रमसे भागहारकी हानि और वृद्धिका प्रमाण होता हैं। पूर्वोक्त समीकरणके अनन्तरः--
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स+ -१ भारतीय गणितमें इस भिन्नका व्यवस्थित रूप भास्कराचार्य में मिलता है । आर्यमय और ब्रह्मगुप्तके ग्रन्थोंमें इस सिद्धांतके केवल बीज सूत्र ही उपलब्ध होते हैं । धवलामें उद्धृत प्राचीन गाथाएँ इस सिद्धान्तकी प्राचीनतापर प्रकाश डालती है। वर्तमान गणितज्ञोंमें इस भिन्नके आविष्कारका श्रेय इटालियन गणितज्ञ मिट्रो एनटोनिया काटालडी को है, इसकी मुत्यु