Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 424
________________ जैन गणित का महत्व भगवान् महावीर की वाणी प्रथमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग ओर द्रव्यानुयोग, इन चार अनुयोगों में विभाजित है। करणानुयोग में अलौकिक और लौकिक गणित-शास्त्र सम्बन्धित तत्त्वों का स्पष्टीकरण किया गया है । प्रस्तुत निबन्ध में केवल लौकिक गणित पर ही प्रकाश डाला जायेगा। लौकिक जैन गणित की मौलिकता और महत्ता के सम्बन्ध में अनेक विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किये हैं। भारतीय गणित-शास्त्र पर दृष्टिपात करते हुए डॉ० हीरालाल कापड़ियाने 'गणित-तिलक' की भूमिका में लिखा है "In this connection it may be added that the Indian in general and the jains in Particular have not been behind any nation in Paying due attention to this subject. This is borne out by Ganita Sarsangraha (V.I. 15) of Mahaviracharya (850.A.D.) of the Southern School of Mathematics. There in the Points out thc usefulness of mathematics or the Scince of Calculation regarding the study of various Subjects like music, logic, drama, medicine, architecture, cookery, prosody, grammar, Pocties, erotis etc.” इन पंक्तियोंसे स्पष्ट है कि जैनाचार्योने केवल धार्मिकोन्नतिमें ही जैन गणितका उपयोग नहीं किया, बल्कि अनेक व्यावहारिक समस्याओंको सुलझानेके लिये इस शास्त्रका प्रणयन किया है । भारतीय गणितके विकास एवं प्रचार में जैनाचार्योंका प्रधान हाथ रहा है । जिस समय गणितका प्रारम्भिक रूप था, उस समय जैनोंने अनेक बीजगणित एवं मेन्सुरेशन सम्बन्ध समस्याओंको हल किया था। ___ डॉ० जी० थीबो (Dr. G. Thibaut) साहबने जैन गणितकी प्रशंसा करते हुए अपने "Astrologie ond Mathematik" शीर्षक निबन्धमें सूर्यप्रज्ञप्तिके सम्बन्धमें लिखा है "This work must have been composed before the greeks came to India' as there is no trace of greek influence in it." इससे स्पष्ट है कि जैन गणितका विकास ग्रीकोंके आगमनके पूर्व ही हो गया था। आपने आगे चलकर इसी निबन्ध में बताया है कि जैन गणित और जैन ज्योतिष ईस्वी सनसे ५०० वर्ष पूर्व अंकुरित ही नहीं, अपितु पल्लवित और पुष्पित भी थे। प्रो० वेबर (weder) ने इन्डियन एन्टीक्वैरी नामक पत्र में अपने एक निबन्ध में बतलाया है कि जैनोंका 'सूर्यप्रज्ञप्ति' नामक ग्रन्थ अत्यन्त महत्वपूर्ण गणित-अन्य है । वेदाङ्ग ज्योतिषके समान केवल धार्मिक कृत्योंके सम्पादनके लिये ही इसकी रचना नहीं हुई है, बल्कि इसके द्वारा ज्योतिषकी अनेक समस्याओंकी सुलझा कर जैनाचार्योंने अपनी प्रखर प्रतिभाका परिचय दिया है।

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