Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 419
________________ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान चतुर्भुजके कोंके लिएकर्ण - V (अ स + ब द) (अ ब + स द) अद+ब स अ - /(अ स + ब द) (अ ब + सद) अब+सद भारतीय गणित परम्परामें महावीराचार्य ही एकमात्र ऐसे गणिताचार्य हैं, जिन्होंने अन्तर्गत (Re-entrant) चतुर्भुजोंका गणित निबद्ध किया है ।' वृत्तान्तर्गत चतुर्भुजका उल्लेख अत्यन्त विस्तारके साथ प्राप्त होता है । रिमित अभपारामत व्यास = क्षेत्र -Isocesiles Trapezilum के सम्बन्धमें त्रिलोकसारमें तीन नियम उपलब्ध होते हैं । (१) क्षेत्रफल = 1 ल (अ + ब) जहाँ अ, ब समानान्तर भृजाओं के माप हैं, वहां इन्हें एवं आधार और मुख को भुजाएं माना जायगा । समलम्ब चतुर्भुज के लिए यह नियम सत्य है । (२) ब की हानि या अ की वृद्धि अ-ब- के अनुसार होती है। (३) किसी ऊंचाई ल पर समानान्तर भुजा के माप को निकालने का नियम ब-अ। महावीराचार्यने गणितसार संग्रहमें किसी त्रिभुज चतुर्भुज और वृत्तको समानुपाती क्षेत्रमें विभक्त करने के नियम भी निबद्ध किये हैं। उदाहरणार्थ एक नियम प्रस्तुत किया जाता है। १. आयतवृत्त-क्षेत्र गणितमार ७।६२ पृ० १९६, बहिश्चक्रवालवृत्त क्षेत्र अन्तश्चक्रवालवृत्त क्षेत्रके नियम ७।६७४ पृ० १९७ २. वही ७८४, ८५ पृ० २०२-२०३ ३. मुहभूमीण विसेसे उदयहिदे भूमुहादु हाणिचयं । जोगदले पदगुणिदे फलं धणो वेध गुणिदफलं ।-त्रिलोकसार गाथा ११४ ४. खंडयुतिभक्ततलमुखकृत्यन्तर गुणित खंडमुखवर्गयुतम् । मूलमघस्तलमुखयुतदल हृतलब्धं च लम्बकः क्रमशः ।। गणितसार संग्रह ७।१७५४ ० २३४

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