Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 407
________________ ३६२ धारा या श्रेणी संस्थाएँ ( Kinds of Series) संख्याओं का वह समुदाय जो किसी क्रम विशेषसे लिखा जाय, धारा या श्रेणी कहा जाता है । जैन लेखकोंने उक्त प्रकारकी संख्याओंका उदाहरण पूर्वक विचार किया है । १. सर्वधारा भारतीय संस्कृति के विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान सर्वधाराको हम आधुनिक शब्दावली में ए. पी. ( Arithmatical Progression) कह सकते हैं । इसका पहला संकेत एक है और अन्तर भी एक है । संख्यात से लेकर अनन्तानन्त संख्या पर्यन्त सभी स्थान सर्वधाराके अन्तर्गत परिगणित हैं । इस धारा में समस्त स्वाभाविक संख्याएं ग्रहणकी जाती हैं। यथा १ + २+३+४+ ५ अनन्तानन्त । २. समधारा संख्याओंके क्षेत्रमें स्वाभाविक संख्याओंको दो वर्गोंमें विभक्त किया जाता है - सम और विषम । समधाराका परिज्ञान प्राप्त करनेके लिए संख्यातका उत्कृष्ट प्रमाण १५ और असंख्यातका २५५ माना है । ये दोनों ही संख्याएँ १ घटाने या जोड़नेके पश्चात् ही समत्वको प्राप्त होंगी; इस संख्याका अन्तिम मान न मान लेनेसे धाराका स्वरूप निम्न प्रकार है२+४+ ६ + ८ + १० + १२ + १४ + + न = समधारा वि + - १............ क 8 न I ३. विषमधारा इस धारा में विषम संख्यक राशियां परिगणित हैं । यथा – २ + १ = ३, ४°१ = ५, ६°१ = ७, ८°१ = ९, १०°१ = ११, १° २१ = १३, १४°१ = १५, १६°१ = १७, १८°१ = १९,...............न + १ = न ४. कृतिधारा । इस धारा में वर्गित संख्याएँ ग्रहणकी गई हैं ४१ = १६, ५१ = २५, ६२ = ३६, ७२ = ४९, ११२=१२१, १२२ = १४४, १३२ = १९६न: यथा - १ था - १२ = = १, २२ = ४, ३ ' = ९, ८२ = ६४, ९२ = ८१, १०२ = १००, || न = ५. अकृतिधारा कृतिधाराकी संख्याओं में घन-रिणात्मक करनेसे अकृतिधाराकी संख्याएँ निष्पन्न होती हैं, ये संख्याएँ अवर्गात्मक ही होती हैं। यथा २, ३, ५, ६, ७, ८, १०, ११, १२, १३, १४, १५, १७ "नरे + - १ न ६. घनधारा घनधाराका संख्या समूह घनरूप रहता है। समत्रिघातको घन कहा जाता है। यथा

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