Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित
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१२- द्वादशेशकी दशामें धनहानि, शारीरिक कष्ट, चिन्ताएं, व्याधियाँ और कुटुम्बियोंको कष्ट होता है । ग्रह दशाका फल सम्पूर्ण दशाकाल में एक सा नहीं होता, किन्तु प्रथम द्रेष्काणमें ग्रह हो तो दशाके प्रारम्भमें द्वितीयके द्रेष्काण में हो तो दशाके मध्यमें और तृतीय द्रेष्काणमें ग्रह हो तो दशाके अन्तमे फलको प्राप्ति होती है । वक्री ग्रह हो तो विपरीत अर्थात् तृतीय द्रेष्काण में ग्रहके होनेपर प्रारम्भमें, द्वितीय द्रेष्काणमें ग्रहके होनेपर मध्यमें और प्रथम द्रेष्काणमें हो तो अन्तमें फल प्राप्त होता है । वक्री ग्रहकी दशामें स्थान, धन और सुखका नाश होता है, और परदेशगमन एवं सम्मानकी हानि होती है ।
मार्गी ग्रहकी दशामें सम्मान, सुख, धन, यशकी वृद्धि, लाभ, नेतागिरी और उद्योगकी प्राप्ति होती है । यदि मार्गी ग्रह ६।८।१२ वें भावमें स्थित हो तो अभीष्ट सिद्धिमें बाधा आती है ।
मोच और शत्रुग्रहकी दशामें परदेशमें निवास, वियोग, शत्रुओंसे हानि, व्यापारसे हानि, दुराग्रह, रोग, विवाद और नाना प्रकारकी विपत्तियाँ आती हैं । यदि ये ग्रह सौम्य ग्रहों से युत या दृष्ट हों तो अशुभ फल कम हो जाता है । इस प्रकार ग्रह दशाके फलादेशका विचार करना जातक तत्वका प्रमुख अंग है ।
अन्तर्मुक्ति
अन्तर्मुक्ति के अन्तर्गत अन्तर्दशा, प्रत्यन्तर्दशा, सूक्ष्मदशा, प्राणदशा और महाप्राणदशाकी गणना की जाती है । प्रत्येक ग्रहकी महादशा में नौ ग्रहों की अन्तर्दशा होती है । अन्तर्दशा निकालने की विधि यह है कि दशा, दशाका परस्पर गुणा कर दशासे भाग देनेसे लब्ध मास और शेषको तीनसे गुणा करनेपर दिन होंगे ।
अन्तर्दशाके आनयनका एक अन्य नियम यह है कि दशा, दशाका परस्पर गुणा करनेसे जो गुणनफल प्राप्त हो, उसमें इकाईके अंकको छोड़ शेष अंक मास और इकाईके अंकको तीनसे गुणा करनेपर दिन संख्या आती है । अन्तर्दशा के आनयन के पश्चात् उसके फलादेशपर भी संक्षेप में विचार कर लेना आवश्यक है
पाप ग्रहकी महादशा में पाप ग्रहकी अन्तर्दशा धनहानि, शत्रुभय और कष्ट देनेवाली होती है । जिस ग्रहकी महादशा हो उससे छठे या आठवें स्थान में स्थित ग्रहोंकी अन्तर्दशा स्थानच्युति, भयानक रोग, मृत्युतुल्य कष्ट या मृत्यु-दायक होती है ।
पाप ग्रहकी महादशा में शुभ ग्रहकी भाग कष्टदायक और आखिरी आधा भाग
शुभ ग्रहकी महादशा में शुभ ग्रहकी शारीरिक सुख प्रदान करती है ।
अन्तर्दशा हो तो उस अन्तर्दशाका पहला आधा सुखदायक होता है ।
अन्तर्दशा घनागम, सम्मान वृद्धि, सुखोदय और
शुभ ग्रहकी महादशा में पाप ग्रहकी अन्तर्दशा हो तो अन्तर्दशाका पूर्वार्द्ध सुखदायक और उत्तरार्द्ध कष्टकारक होता है ।
पापग्रहकी महादशा में अपने शत्रु ग्रहसे युक्त पाप ग्रहको अन्तर्दशा हो तो विपत्ति आती है । शनि क्षेत्रमें चन्द्रमा हो तो उसकी महादशामें सप्तमेशकी महादशा परम कष्टदायक होती है ।
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