Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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आचार्य नेमिचन्द्र और ज्योतिष शास्त्र आचार्य श्रीनेमिचन्द्र ज्योतिष-शास्त्रकेभी मर्मज्ञ विद्वान् थे । इनके त्रिलोकसारान्तर्गत ज्योतिष-सम्बन्धी विषयों पर प्रकाश डालना ही प्रस्तुत लेखका उद्देश्य है। विषुप-विचार
आचार्य नेमिचन्द्र ने विषुप दिनका विचार बहुत सूक्ष्मदृष्टिसे किया है । जिस दिन दिनरात्रि दोनों समान हों वह विषुप दिन कहलाता है। यह वर्ष में दो बार आता है । आचार्यके मतसे प्रत्येक अयनके अर्धभाग में विषुप दिन आता है । ज्योतिष शास्त्रके नियमसे भी यह दिन सायन मेषादि और सायन तुलादिमें पड़ता है; इसका भी अर्थ वही है जो आचार्यने अयनार्ध भागमें बतलाया है । क्योंकि कर्कसे लेकर धनु-पर्यन्त दक्षिणायन होता है । इसमें तुलाके सायन सूर्यमें विषुप दिन पड़ेगा । यहाँ पर भी अयनके अर्धभागमें ही विषुप दिन माना गया है । इसी प्रकार मकरसे लेकर मिथुन तक उत्तरायण होता है। इसमें भी मेषके सायन सूर्यमें विषुप दिन माना गया है-अर्थात् अयन के अर्धभागमें ही विषुप दिन पड़ता है। यही अन्य ज्योतिष ग्रन्थोंमें भी मिलता है। जैसे आचार्यने पञ्चवर्षात्मक युग मान कर उस युगमें विषुप दिनकी तिथि तथा नक्षत्र लानेका करण-सूत्र बतलाया है। उसी प्रकार वेदाङ्ग ज्योतिष मेंभी पञ्चवर्षात्मक युग मान कर विषुप दिनके तिथि नक्षत्रका साधन किया गया है । आचार्य-कृत-करणसूत्र यह है :
विगुणे सगिट्ट इसुपे रुऊणे छग्गुणे हवे पम्प ।
तप्पव्वदलं तु तिथि पवट्टमाणस्स इसुपस्स ।।४२७॥ अर्थ-विषुप-संख्याको दूना करके उसमेंसे एक घटा कर शेषको छः से गुणा करनेसे पर्वका प्रमाण आयेगा और पर्वका आधा तिथि-संख्या आयेगी । इसी आशयका वेदाङ्ग ज्योतिष में भी निम्नांकित करण-सूत्र है :
विषुवत् तद्विरभ्यस्तं रूपोनं षड्गुणीकृतम् ।
पक्षाः यदाधं पक्षाणां तिथिः स विषुवान् स्मृतः ।। यह अति प्राचीन हिन्दू ग्रन्थ वेदाङ्ग ज्योतिषका बावीसवां श्लोक है । इसका अर्थ भी वही है जो आचार्यके करण-सूत्रका है । अर्थात् विषुप संख्याको दो से गुणा करके गुणनफलमेंसे एक घटा शेषको छः से गुणा करने पर विषुपकी पर्व-संख्या आयेगी और पर्वका आधा तिथिसंख्या होगी। इस प्रकारका मत अन्यान्य अजैन ज्योतिष ग्रन्थोंमें पाया जाता है और आचार्य के करण-सूत्रकी वासना भी सिद्ध होती है। जब-तक किसी भी सूत्रकी वासना सिद्ध न होवे तब-तक वह सर्वमान्य नहीं हो सकता है । वासना इस प्रकारसे है
माघ शुक्ल के आदिसे तीन सौरमास के अन्तरालमें पहिला विषुप दिन पड़ेगा । क्योंकि विषुप दिन सायन मेषादि और सायन तुलादिमें ही पड़ता है। इसलिये युगादिसे ६० सौर