Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati

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Page 381
________________ ३३६ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान .:.नक = क ग + न ग (रे० १ अ० ४७ प्र०) अब यहाँपर दोनोंमें से न गरे को अलग कर दिया तो क ग = ग च x अ ग अथवा क ग - क ग x ग घ .:. क ग x ग घ = ग च x अ ग .:. ग च ५ अ ग = क गे= व्यास x १० व्यास = क गे - व्यास ४१० इसका वर्गमूल परिधि होगा। इस प्रकारसे कमलाकरके सूत्रकी वासना सिद्ध होती है । परन्तु कमलाकर और आचार्य के सूत्रमें कोई भी भेद नहीं है। दोनोंका अर्थ एक है। इसलिये संभवतः यह सिद्ध हुआ कि आचार्यका अनुसरण कमलाकर भट्टने किया हो । क्योंकि कमलाकरका जन्म १५८० शकाब्दमें हुआ है; और नेमिचन्द्राचार्य इनसे बहुत पहले हुए हैं। इसलिए संभवतः यह मानना पड़ता है कि आचार्यकी मान्यताका ही अनुकरण कलाकार भट्टने किया हो । आधुनिक ग्रह-गणितकी उपयोगितामें भी ग्रहकक्षाकी परिधि लाने के लिए इसी नियमको आवश्यकता होती है । क्योंकि सूक्ष्म परिधि इसी नियमसे निकलती है तथा वृत्त-क्षेत्रका गणित भी ज्योतिष-शास्त्रमें बहुत आवश्यक है । बिना ज्या-चाप और परिधि गणितके ग्रह स्फुट नहीं हो सकते हैं। इसलिये हो आचार्यने परिधि-नियमको सूक्ष्म बतलाया है। यह एक महत्त्वका विषय है । इसकी प्रशंसा आधुनिक और प्राचीन ग्रहगणितके जाननेवाले ज्योतिर्विदोंने की है । सिद्धान्त-शिरोमणि गोलाघ्यायमें भास्कराचार्यने पचासों श्लोक इसकी प्रशंसामें लिख डाले हैं तथा आगे जाकर भू-परिधिका मध्यम और स्फुट मान निकालते समय भी इसी नियमका आश्रय लिया है । अत एव आचार्यकृत परिधि लानेका करण-सूत्र बहुत ही उपयोगी है । बाण-ज्या-चाप-विचार आचार्यने बाण-ज्या-चाप के गणित को निकालनेके लिये कई करण-सूत्र बतलाये हैं; जिनकी वासना भी युक्तियुक्त है और सूत्रोंमें भी लाघव किया है । अत एव गणित-ज्योतिषके विषयको ज्या-चाप का गणित बहुत ही कष्ट करता है । गणित-शास्त्रमें जो नियम लाघवका हो वही महत्त्वपूर्ण समझा जाता है; इसलिये आचार्यकृत ज्या-चाप-बाणका गणित बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। लीलावती, बीजसिद्धान्त आदिमें इतने लाघव-पूर्ण एवं सूक्ष्म विषयको प्रतिपादन करनेवाले सूत्र नहीं मिल सकते हैं। उदाहरणके लिये एकाध नमूना पाठकोंके सामने रखता हूँ। बाण निकालनेके लिये आचार्यका सूत्र : जीवाविक्खंभाणं वग्गविसेसस्स होदि जम्मूलम् । तं विक्खंभा सोहय सेसद्धमिसुं विजाणाहि ॥ अर्थ-जीवाके वर्गको वृत्तके व्यासके वर्गमसे घटा कर जो शेष रहे उसका वर्गमूल जो आवे उसमेंसे व्यासको घटा देवें तो शेषका आधा करनेसे बाण आजायेगा । लीलावतीका बाण लानेका सूत्र ज्याव्यासयोगान्तरघातमूलं व्यासस्तदूनो दलितः शरः स्यात् ।। अर्थ-ज्या और व्यासको योग और अन्तर करके दोनोंका आपसमें गुणा कर ले; फिर उसका वर्ग-मूल निकालें बाद उसमें से व्यास घटा देने और शेषको आधा कर देने पर बाण बाजायेगा । अब विचार कीजियेगा कि इस सूत्रके गणितमें कितना गौरव है; क्योंकि योग और अन्तर पृथक-पृथक् करके फिर गुणा करें तब गुणनफल वर्गान्तर-तुल्य होगा। किन्तु आचार्यने

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