Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित
३२७ विषम राशि-१,३,५,७,९,११ में छः अंश तक बालक, बारह अंश तक कुमार, अठारह अंश तक युवा, चौबीस अंश तक वृद्ध और तीस अंश तक मृत अवस्थामें रहता है । समराशि-२।४।६।८।१०।१२ में छः अंश तक मृत, बारह अंश तक वृद्ध, अठारह अंश तक युवा, चौबीस अंश तक कुमार और तीस अंश तक बाल्यावस्थामें रहते हैं। जिस अवस्थामें ग्रह हो, उसी अवस्था तुल्यकालमें कार्य होता है । वृद्ध और मृत अवस्थामें ग्रह उत्तम नहीं होते।
जिस नक्षत्रमें ग्रह स्थित हो उस नक्षत्रकी संख्याको ग्रहको संख्यासे गुणा करे और गुणनफलको ग्रहके मुतांशसे गुणा करे और जन्मलग्नकी संख्या और इष्ट घटीको जोड़ दे। इस योगफलमें बारहका भाग देनेपर एक शेष रहने पर शयन, दो शेष रहने पर उपवेशन, तीन शेष रहनेपर नेत्रपाणि, चार शेष रहे तो प्रकाश, पाँच शेष रहे तो गमन, छः शेष रहने पर आगमन, सात शेष रहनेपर समा, आठ शेष रहनेपर गम, नौ शेष रहनेपर भोजन, दस शेष रहनेपर विलास, ग्यारह शेष रहनेपर कौतुक और शून्य शेष रहनेपर निद्रा अवस्था ज्ञात करनी चाहिए । इनमें उपवेशन, प्रकाश, सभा, विलास और कौतुक अवस्थागत ग्रह उत्तम होता है।
___ जातककी क्रिया, गति और फलका पूर्ण ज्ञान प्राप्त करनेके लिए अष्टोत्तरी, विंशोत्तरी और यौगिनी आदि दशाओंका विश्लेषण आवश्यक होता है । ग्रहों के शुभाशुभत्वका समय दशाके द्वारा ही ज्ञात होता है। मारकेशका निर्णय भी दशा ज्ञानके बिना सम्भव नहीं है। दक्षिण भारतमें अष्टोत्तरी दशाका और उत्तर भारतमें विंशोत्तरी दशाका प्रचार है । दशाविचार
___विंशोत्तरी दशामें १२० वर्षकी आयु मानकर ग्रहोंका विभाजन किया गया है । सूर्यकी दशा छः वर्ष, चन्द्रमाकी दश वर्ष, भौमकी सात वर्ष, राहुकी अठारह वर्ष, गुरुकी सोलह वर्ष, शनिको उन्नीस वर्ष, बुधकी सत्रह वर्ष, केतुकी सात वर्ष एवं शुक्रकी बीस वर्षकी दशा बतायी गयी है। दशा ज्ञात करने की विधि यह है कि व्यक्तिका, उत्तरा फाल्गुनी और उत्तराषाढामें जन्म होनेसे सूर्यकी, रोहिणी, हस्त और श्रवणमें जन्म होनेसे चन्द्रमाकी, मृगशिरा, चित्रा और घनिष्ठा नक्षत्रमें जन्म होनेसे मंगलकी, आर्द्रा, स्वाति और शतमिषामें जन्म होनेसे राहुकी, पुनर्वसु, विशाखा और पूर्वाभाद्रपदमें जन्म होनेसे गुरुकी, पुष्य, अनुराधा
और उत्तराभाद्रपदमें जन्म होनेसे शनिकी, आश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवतीमें जन्म होनेसे बुधकी मघा, मूल और अश्विनीमें जन्म होनेसे केतुकी एवं भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और पूर्वाषाढामें जन्म होनेसे शुक्रकी दशा होती है ।
भयात और भभोगको पलात्मक बनाकर जन्म नक्षत्रके अनुसार जिस ग्रहकी दशा हो, उसके वर्षोंसे पलात्मक भयात को गुणा कर पलात्मक भभोगका भाग देनेसे लब्ध वर्षादि आते हैं। इस वर्षादिको भुक्तमान कहा जाता है और इसे दशा वर्षमेसे घटानेपर भोग्य वर्षादि मान होता है। भावेशोंके अनुसार विंशोत्तरी दशाका फल जाननेकी निम्नलिखित विधियाँ हैं
१-लग्नेशकी दशामें शारीरिक सुख और धनागम होता है। परन्तु स्त्रीकष्ट भी देखा जाता है।