Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
विकला अधिक हों वह आत्मकारक होता है । विकलाओं में भी समानता होनेपर जो बली ग्रह होगा वही जातकका आत्मकारक ग्रह माना जाएगा। आत्मकारकसे अल्प अंश वाला भ्रातृकारक, उससे न्यून अंश वाला मातृकारक, उससे न्यून अंश वाला पुत्रकारक, उससे न्यून अंश वाला जातिकारक और उससे न्यून अंश वाला स्त्रीकारक होता है । कारकांश कुण्डली निर्माण की प्रक्रिया यह है कि आत्मकारक ग्रह जिस राशिके नवमांशमें हो उसको लग्न मानकर सभी ग्रहोंको यथास्थान स्थापित कर देनेसे कारकांश कुण्डली बनती है ।
स्वांश कुण्डलीका निर्माण प्रायः कारकांश कुण्डली के समान ही होता है । इसमें लग्नराशि कारकांश कुण्डलीकी ही मानी जाती है, किन्तु ग्रहोंका स्थापन अपनी अपनी नवांश राशिमें किया जाता है । अर्थात् नवांश कुण्डलीमे ग्रह जिस जिस राशिमे आये हैं स्वांश कुण्डली में भी उस उस राशिमें स्थापित किये जाते हैं । ग्रहयोग
ग्रह योगोंका विचार तृतीय सिद्धान्तके अन्तर्गत है ! ग्रह योगोंकी संख्या पाँच-छह सौ से कम नहीं है, पर प्रधानतः राजयोग, रज्जुयोग, मुसल योग, नल योग, माला योग, सर्पयोग, गदायोग, शकटयोग, पक्षीयोग, शृंगाटक योग, हलयोग, वज्र योग, कमल योग, बापी योग, शक्तियोग, दण्ड योग, नौका योग, कूप योग, क्षत्रयोग, चापयोग, चक्रयोग, गज केसरी योग, शरद योग आदि योग प्रधान है। योगोंक विचार हा जातकके वास्तविक फलका परिज्ञान होता है । जिस जन्म कुण्डली में तीन अथवा चार ग्रह अपने उच्च या मूल त्रिकोणमें बली हों तो प्रतापशाली व्यक्ति मन्त्री या राज्यपाल होता है, जिस जातकके पाँच अथवा छः ग्रह उच्च या मूल त्रिकोणमें स्थित हों, तो वह दरिद्र-कुलोत्पन्न होनेपर भी राज्य शासनमें प्रमुख अधिकार प्राप्त करता है। जिस जातकके जन्म समय मेष लग्नमें चन्द्रमा, मंगल और गुरु हों अथवा इन तीनों ग्रहोंमेंसे दो ग्रह मेष लग्न में हों तो वह निश्चय ही मन्त्री पद प्राप्त करता है। मेष लग्नमें उच्च राशिके ग्रहों द्वारा दृष्ट गुरुके स्थित होनेसे शिक्षा मन्त्री पद प्राप्त होता है । मेष लग्नमें उच्चका सूर्य हो दशममें मंगल हो और नवम भावमें गुरु स्थित हो तो व्यक्ति प्रभावक, मन्त्री या राज्यपाल होता है । गुरु अपने उच्च में तथा मंगल लग्नस्थ हो और इस स्थानमें मेष राशि हो तो गृह मन्त्री या विदेश मन्त्रीका पद-प्राप्त होता है । मेष लग्नमें जन्म ग्रहण करनेवाला व्यक्ति निर्बल ग्रहोंके होने पर पुलिस अधिकारी होता है । यदि इस लग्नके व्यक्तिकी कुण्डलीमें क्रूर ग्रह-शनि, रवि और मंगल उच्च या मूल त्रिकोणमें हों और गुरु नवम भावमें स्थित हो तो रक्षा मन्त्रीका पद प्राप्त होता है । एकादश भावमें चन्द्रमा शुक्र और गुरु हों, मेषमें मंगल हो, मकरमें शनि हो और कन्यामें बुध हो तो व्यक्ति को राजाके समान सुख प्राप्त होता है । राजयोगोंके विचारके लिए उच्च, मूल त्रिकोण नवांश और स्वराशिका विचार करना आवश्यक है । जन्म कुण्डली में समस्त ग्रह अपने अपने परमोच्च में हों और बुध अपने उच्च नवांशमें हो तो जातक चुनाव में विजयी होता है तथा उसे राजनीतिमें यश और उच्च प्रद प्राप्त होता है। उच्च ग्रहके रहनेसे राष्ट्रपतिका पद भी मिलता है । चन्द्रमा, मंगल और बृहस्पतिके उच्चांशों द्वारा राष्ट्रपति पद, मन्त्री पद, एम० एल० ए०, एम० पी० आदि का विचार किया जाता है । उच्चका गुरु केन्द्र स्थानमें और शुक्र दशम भाव