Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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१२० भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान वृश्चिकका और नवम धनु राशिका नवांश होता है । अन्तिम नवम नवांशमें मेष राशिकी समाप्ति और वृष राशिका प्रारम्भ हो जाता है । अतः वृष राशिमें प्रथम नवांश मेष राशिके अन्तिम नवांशसे आगेका आता है। इस प्रकार वृषमें प्रथम नवांश मकरका, द्वितीय कुंभका, तृतीय मीनका, चतुर्थ मेषका, पंचम वृषका, षष्ठ मिथुनका, सप्तम कर्कका, अष्टम सिंहका और नवम कन्याका होता है। मिथुनमें प्रथम नवांश तुलाका, द्वितीय वृश्चिकका, तृतीय धनुका, चतुर्थ मकरका, पंचम कुंभका, षष्ठ मीनका, सप्तम मेषका, अष्टम वृषका और नवम मिथुनका होता है । कर्क में प्रथम कर्कका, द्वितीय सिंहका, तृतीय कन्याका, चतुर्थ तुलाका, पंचम' वृश्चिकका, षष्ठ धनुका, सप्तम मकरका, अष्टम कुम्भका और नवम मीनका होता है। सिंहमें प्रथम मेषका, द्वितीय वृषका, तृतीय मिथुनका, चतुर्थ कर्कका, पंचम सिंहका, षष्ठ कन्याका, सप्तम तुलाका, अष्टम वृश्चिकका और नवम नवांश धनुका होता है। कन्या प्रथम मकरका; द्वितीय कुम्भका, तृतीय मीनका, चतुर्थ मेषका, पंचम वृषका, षष्ठ मिथुनका, सप्तम कर्कका, अष्टम सिंहका और नवम कन्याका नवांश होता है । तुलामें प्रथम तुलाका, द्वितीय वृश्चिकका, तृतीय धनुका, चतुर्थ मकरका, पंचम कुम्भका, षष्ठ मीनका, सप्तम मेषका, अष्टम वृषका और नवम नवांश मिथुनका होता है । वृश्चिक राशिमें प्रथम नवाश कर्कका, द्वितीय सिंहका, तृतीय कन्याका, चतुर्थ तुलाका, पंचम वृश्चिकका, षष्ठ धनुका, सप्तम मकरका, अष्टम कुम्भका और नवम मीनका नवांश होता है । इसी क्रमानुसार आगेकी राशियोंमें भी नवांशकी गणनाकी जाती है ।
गणित विधिसे नवमांश निकालनेका नियम यह है कि अभीष्ट संख्यामें राशि अंकको नौसे गुणा करने पर जो गुणनफल प्राप्त हो उसमें तीन अंश बोस कलाका भाग देनेसे जो फल प्राप्त हो उसे अभीष्ट संख्यामें जोड़ देनेसे नवांश आ जाता है । चर राशिका प्रथम नवांश, स्थिर राशिका पंचम नवांश और द्विस्वभाव राशिका अन्तिम नवांश वर्गोत्तम नवांश कहलाते हैं। सप्तमांशादि विचार
सप्तमांश निकालनेकी विधि यह है कि चार अंश, सत्रह कला, आठ विकला प्रमाण एक सप्तमांश होता है। समराशिमें उस राशिकी सप्तम राशिसे और विषम राशिमें उसी राशिसे सप्तमांशकी गणना की जाती है । लग्न और ग्रहोंके सप्तमांश निकाल कर उनमें ग्रहोंका स्थापन करनेसे सप्तमांश कुण्डली बन जाती है ।
. एक राशिमें दश दशमांश होते हैं अर्थात् तीन अंशका एक दशमांश होता है । विषम राशिमें उसी राशिसे और सम राशिमें नवम राशिसे दशमांशकी गणना होती है । वशमांश कुणाली बनानेकी विधि यह है कि लग्न स्पष्ट जिस दशमांशमें हो वही दशमांश कुण्डलीका लग्न माना जाता है और ग्रह स्पष्ट द्वारा ग्रहोंको मात कर जिस दशमांशका जो ग्रह हो उस महको उस राशिमें स्थापन करनेसे दशमांश कुण्डली बनती है ।
राशिके बारह भागोंमें से उसका एक भाग द्वादशांश कहलाता है। गणितानुसार यह दो बंश तीस कला का होता है। द्वादश गणना अपनी राशिसे ली जाती है । यथा मेपमें