Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित
५-प्राणपद क्रिया द्वारा आए हुए प्राणपदके अंश लग्नांशोंके तुल्य हों तो लग्न शुद्ध होता है । अंशोंमें असमानता होते हुए भी इष्टकालको संशोधित करना आवश्यक है।
६-इष्टकालमें दो का भाग देनेसे जो लब्धि आए उसमें सूर्य जिस नक्षत्रमें हो उस नक्षत्र की संख्या को जोड़ दें। इस योगमें २७ का भाग देनेसे जो शेष रहे, उसी संख्यक नक्षत्र की राशिमें लग्न होता है । यदि यह लग्न और गणितागत पूर्व लग्न समान हो तो लग्न शुद्ध माना जाता है।
___७-इष्ट कालको छः से गुणा कर गुगनफलमें जन्मदिनके सूर्यके अंश जोड़ दें। इस योगफलमें ३० का भाग देकर लब्धि ग्रहण कर ले । तथा १५ से अधिक शेष रहने पर लब्धिमें एक और जोड़ देना चाहिए। यदि ३० से भाग न जाए तो लब्धि एक मान लेनी चाहिए । सूर्य-राशिकी अगली राशिसे भागफलके अंकोंकी गणना कर लेनेसे जो राशि आवे वही लग्नकी राशि होगी। यदि यह राशि गणितागत लग्नसे मिल जाए तो लग्नको शुद्ध समझना चाहिए।
८-यदि दिनमें दिनमानके अद्धभागसे पहले जन्म हो तो जन्म-कालीन रविगत नक्षत्र से सातवें नक्षत्रकी राशि, दिनके अवशेष भागमें जन्म हो तो रविगत नक्षत्रसे बारहवें नक्षत्रकी राशि एवं रात्रिके पूर्वार्धमें जन्म होनेसे सत्रहवें नक्षत्रकी राशि और शेष रात्रिमें जन्म होनेसे चौबीसवें नक्षत्रकी राशि लग्नराशि होती है । यह राशि यदि गणितागत लग्नकी राशिके तुल्य हो तो लग्न शुद्ध माना जाता है ।
१-चन्द्रमासे पंचम या नवम स्थानमें लग्न-राशिका होना सम्भव है । चन्द्रमाके नवमांशके सप्तम स्थानसे नवम और पंचम स्थानमें प्रायः लग्न-राशि स्थित रहती है । चन्द्रमा जिस स्थानमें स्थित हो उस स्थानके स्वामोसे विषम स्थानोंमें लग्नका होना सम्भव है । लग्नमें भी चन्द्रमा रह सकता है।
इस प्रकार लग्नका निश्चय करनेके उपरान्त क्षेत्र, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, दशमांस, सप्तांश, द्वादशांश, त्रिंशांश, षोडशांश और षष्ठ्यांशका आनयन करना आवश्यक है। यदि सम्पूर्ण राशिको एक माना जाए और उसके दो हिस्से किये जाएं तो प्रत्येक अाश होरा कहलाता है। यदि राशिके तीन समान अंश किये जाएँ तो प्रत्येक भाग द्रेष्काण कहलाएगा। जो ग्रह जिस राशिका स्वामी होता है वही उस राशिके प्रथम द्रेष्काणका अधिपति कहलता है । उस राशिसे पंचम राशिका अघोश्वर ग्रह द्वितीय द्रेष्काण का अधिपति और उससे नवम राशिका अधीश्वर ग्रह तृतीय द्रेष्काण का अधिपति होता है । इस प्रकार प्रत्येक राशिके द्रेष्काण और उनके अधिपतियोंको ज्ञात करना चाहिए। नवमांश
___ राशिके नवभागोंमें से एक भागको नवमांश कहते हैं । अर्थात् प्रत्येक राशिमें तीन अंश बीस कलाका एक नवमांश होता है। अतएव प्रत्येक राशिमें नव राशियोंके नवमांश होते हैं । यहाँ यह विचारणीय है कि प्रत्येक राशिमें रहनेवाले नवमांश किन-किन राशियों के होंगे ? इस प्रश्नका समाधान करते हुए बताया है कि मेषमें प्रथम नवमांश मेषका, द्वितीय वृषका, तृतीय मिथुनका, चतुर्य कर्कका, पंचम सिंहका, षष्ठ कन्याका, सप्तम तुलाका, अष्टम