Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
View full book text
________________
ज्योतिष एवं मणित
३२१
मेषसे, वृषमें वृषसे, मिथुनमें मिथुनसे आदि । द्वादशांश कुण्डली पूर्ववत् लक्ष्य स्पष्ट में द्वादशांश निकालकर द्वादशांश लग्न एवं स्पष्ट ग्रहोंमें द्वादशांश निकाल कर द्वादशांश कुण्डली के ग्रह आते हैं ।
एक राशिमें सोलह षोडशांश होते हैं । एक षोडशांश एक अंश, बावन कला और तीस विकला का होता है । षोडशांशकी गणना चार राशियों में मेषादि से, स्थिर राशियों में सिंहादिसे और द्विस्वभाव राशियों में धनु राशिसेकी जाती है । लग्न स्पष्ट जिस षोडशांशमें आया हो वही षोडशांश कुण्डलीका लग्न एवं ग्रह - स्पष्ट के अनुसार षोडशांश निकाल कर ग्रह स्थापित किये जाते हैं । विषम राशियों में - मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु और कुम्भमें प्रथम पाँच अंश वाला त्रिशांश मंगलका, द्वितीय पाँच अंश शनिका, तृतीय आठ अंश बृहस्पतिका, चतुर्थ सात अंश बुधका और पंचम पाँच अंश शुक्रका त्रिशांश होता है । सम राशियों— वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीनमें प्रथम पाँच अंश शुक्रका, द्वितीय सात अंश बुधका, तृतीय आठ अंश वृहस्पतिका, चतुर्थ पाँच अंश शनिका और पंचम पाँच अंश मंगल का त्रिशांश होता है ।
मैत्री- विचार
एक षष्ठ अंश तीस कलाका माना गया है । लग्न और ग्रहोंके षष्ठ अंश निकाल कर पूर्ववत् षष्ठ अंश कुण्डली तैयार की जाती है । षड्वर्ग, दशवर्ग और षोडशवर्ग विचार क्रम में ग्रह मैत्री और स्वांश एवं कारकांशका ज्ञान भी आवश्यक है । निसर्ग मैत्रीका विचार करते हुए आचार्योंने बताया है कि सूर्य के मंगल, चन्द्रमा और बृहस्पति निसर्ग मित्र, शुक्र और शनि शत्रु एवं बुध सम है । चन्द्रमाके सूर्य और बुध मित्र, बृहस्पति, मंगल शुक्र और शनि सम हैं । मंगल के सूर्य, चन्द्रमा और बृहस्पति मित्र, बुध शत्रु, शुक्र और शनि सम हैं । बुधके शुक्र और सूर्य मित्र, शनि, बृहस्पति और मंगल सम एवं चन्द्रमा शत्रु है । बृहस्पति के सूर्य, मंगल और चन्द्रमा मित्र, शनि सम एवं शुक्र और बुध शत्रु हैं । शुक्र के शनि, बुध मित्र, चन्द्रमा, सूर्य शत्रु और बृहस्पति मंगल सम है । शनिके सूर्य, चन्द्रमा और मंगल शत्रु, बृहस्पति सम एवं शुक्र और बुध मित्र हैं ।
तात्कालिक मैत्रीकी दृष्टिसे जो ग्रह जिस स्थानमें रहता है वह उससे दूसरे, तीसरे, चौथे, दशवें, ग्यारहवें और बारहवें भावके साथ मित्रता रखता है- तात्कालिक मित्र होता है । अन्य स्थानों – ११५ ६ ७ ८ ९ के ग्रह शत्रु होते हैं । नैसर्गिक और तात्कालिक मैत्री इन दोनोंके सम्मिश्रणसे पाँच प्रकार के मित्र शत्रु होते हैं - १ - अति मित्र, २ - अतिशत्रु, ३- मित्र, ४ - शत्रु और ५ - उदासीन - सम । तात्कालिक और नैसर्गिक दोनों स्थानोंमें मित्रता होनेसे अतिमित्र, दोनों स्थानोंमें शत्रु होनेसे अतिशत्रु, एक में मित्र और दूसरे में सम होनेसे मित्र, एक में सम और दूसरेमें शत्रु एवं एकमें शत्रु और दूसरेमें मित्र होनेसे सम-उदासीन ग्रह होते हैं ।
कारक और स्वांश-विचार
सूर्यादि सप्त ग्रहों में जिसके अंश सबसे अधिक हों वही आत्मकारक ग्रह होता है । यदि अंश बराबर हों तो उनमें जिसकी कला अधिक हों, वह, कलाकी समता होनेपर जिसकी
४१