Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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चन्द्र गगन खण्ड =
१७६८
रवि गगन खण्ड = १८३०
नक्षत्र गगन खण्ड = १८३५
६३०×१ ६७
मध्यम
अभिजितका मान ६३० गगन खण्ड, जघन्य नक्षत्रोंका १८०५ गगन - खण्ड, नक्षत्रोंके २०१० गगन-खण्ड, उत्तम नक्षत्रोंके ३०१५ गगन खण्ड हैं । यह नक्षत्रोंकी कलात्मक • मर्यादाका मान है । इस परसे चन्द्रमाके प्रत्येक नक्षत्रका मान इस प्रकार होगा
(१८३५-१७६८) = ६७ चन्द्रमाको कलात्मक स्वतंत्र गति है । इस गतिका चन्द्रमा की मर्यादामें भाग देनेसे दैनिक नक्षत्र अथवा चन्द्रमा के नक्षत्रका मान होगा ।
३०१५
६७
२७ = ९
'६७
ज्योतिष एवं गणित
for ग्रहों के नक्षत्रोंका क्रम
} a
ये गमन करनेके कलात्मक टुकड़े हैं ।
अभिजितका मान हुआ ।
के प्रत्येक जघन्य नक्षत्र का सध्यम मान हुआ ।
२०१० X १ ६७
२०१० ६७
=
१००५x१ १००५ = १५ मुहूर्त चन्द्रमा
६७
६७
=
३०७
= ३० मुहूर्त यह चन्द्रमा के प्रत्येक मध्यम,
३०१५x१ ६७
= ४५ मुहूर्त यह चन्द्रमा के प्रत्येक उत्तम नक्षत्र का मान हुआ ।
(१८३५-१८३०) = ५ कलात्मक मध्यम सूर्य गति हुई, जो कि आजकल के मान से ५९°८" के बराबर होती है । इसका नक्षत्रोंकी मर्यादा में भाग देनेसे सूर्य नक्षत्र मानका प्रमाण आता है ।
६३०×१
६३०
५
५
नक्षत्र के साथ रहता है ।
जैन ग्रंथों की मान्यता के अनुसार उत्तम, मध्यम और जघन्य नक्षत्रोंका विभाग इस प्रकार है
= १२६ मुहूर्त अर्थात् ४ दिन ६ मुहूर्त्त सूर्य अभिजित्
उत्तम नक्षत्र - रोहिणी, विशाखा, पुनर्वसु, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़ा, उत्तराभाद्रये ६ नक्षत्र उत्तम संज्ञक हैं ।
पद्,
मध्यम नक्षत्र - अश्विनी, कृत्तिका, मृगशिर, पुष्य, मघा, हस्त, चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाभाद्रपद् पूर्वाफाल्गुनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, रेवती, ये पन्द्रह नक्षत्र मध्यम संज्ञक हैं ।
जघन्य नक्षत्र - शतभिष, भरणी, आर्द्रा, स्वाति, आश्लेषा, ज्येष्ठा, ये छह नक्षत्र जघन्य संज्ञक हैं ।
इन नक्षत्रोंकी सिद्धि उपर्युक्त प्रकारसे ही जाननी चाहिये । परन्तु यह पञ्चाङ्ग प्रणाली मध्यम मानसे है । इसको स्पष्ट बनानेके लिये देशान्तर, कालान्तर संस्कार अवश्य करने पड़ेंगे, तभी ग्रहोंका स्पष्ट मान आयेगा ।
दि० जैन ग्रन्थोंमें देशान्तर, कालान्तरका विधान मुझे अभी तक देखने को नहीं मिला है, संभव है किसी ग्रन्थमें हो । परन्तु श्वेताम्बर मान्यता के आधारपर से देशान्तर संस्कार निम्न प्रकारसे किया जाता है ।