Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान अधिक रहता है उनकी किरणें अमृतमय है, जिसमें तमोगुण अधिक रहता है उसकी विषमय जिसमें रजोगुण अधिक रहता है उसकी किरणें उभय गुण मिश्रित एवं जिनमें तीनों गुणोंकी अल्पता रहती है उन ग्रहोंकी गुणहीन किरणें मानी गयी हैं । ग्रहोंके शुभाशुभत्वका विभाजन भी किरणोंके गुणोंके आधार पर ही हुआ है। आकाशमें प्रतिक्षण अमृत रश्मि सौम्य ग्रह अपनी गतिसे जहाँ-जहाँ गमन करते है उनकी किरणें भूमण्डलके उन उन प्रदेशोंपर पड़कर बाँके निवासियोंके स्वास्थ्य बुद्धि आदि पर अपना सौम्य प्रभाव डालती हैं । विषमय किरणोंवाले क्रूर ग्रह अपनी गति से जहां विचरण करते हैं वहाँ वे अपने दुष्ट भावसे वहाँके निवासियों के स्वास्थ्य और बुद्धि पर अपना कुप्रभाव डालते हैं । मिश्रित रश्मि ग्रहोंके प्रभाव मिश्रित एवं गुणहीन रश्मि-ग्रहोंके प्रभाव अकिंचित्कर होते हैं । जन्मके समय जिन जिन रश्मि ग्रहोंकी प्रधानता होती है, जातकका मूल स्वभाव वैसा ही बन जाता है।
आचार्य वराहमिहिरने बताया है कि जिन व्यक्तियोंका जन्म काल पुरुषके उत्त मांगअमृतमय रश्मियों के प्रभावसे होता है, वे बुद्धिमान, सत्यवादी, अप्रमादी, स्वाध्यायशील, जितेन्द्रिय, मनस्वी एवं सच्चरित्र होते हैं, जिनका जन्म काल-पुरुषके मध्यमांग--रजोगुणाधिक्य मिश्रित रश्मियोंके प्रभावसे होता है, वे मध्यम बुद्धि, तेजस्वी, शूरवीर, प्रतापी, निर्भय, स्वाध्याय शील, साधु अनुग्राहक एवं दुष्ट निग्राहक होते हैं। जिनका जन्म उदासीन अंग गुणत्रय की अल्पतावाली ग्रह-रश्मियोंके प्रभावसे होता है वे उदासीन बुद्धि, व्यवसाय कुशल, पुरुषार्थी, स्वाध्यायरत एवं सम्पत्तिशाली होते हैं, एवं जिनका जन्म अधमांग-तमोगुणाधिक्य रश्मिवाले ग्रहोंके प्रभावसे होता है बे विवेकशून्य, दुर्बुद्धि, व्यसनी, सेवाव्रती एवं होनाचरणवाले होते हैं । अतएव स्पष्ट है कि मनुष्यके गुण स्वभाव का अंकन पूर्वोपार्जित कर्म संस्कारके अनुसार ग्रह रश्मियोंके प्रभावसे घटित होता है जिस ग्रह नक्षत्र के वातावरण की प्रयानता रहती है अथवा जिनके तत्व विशेषके प्रभाव में व्यक्ति उत्पन्न होता है उस व्यक्ति में ग्रहके अनुसार उसी तत्व को प्रमुखता समाविष्ट हो जाती है । देशकृत और कालकृत ग्रहोंके संस्कार इस बातके सूचक है कि काल या किसी स्थान विशेषके वातावरण में उत्पन्न एवं पुष्ट होनेवाला प्राणी उस काल या उस स्थानपर पड़ने वाली प्रहरश्मियों को अपनी निजी विशेषता रखता है । अतएव व्यक्तित्व में समाविष्ट प्रह विशेष वैयक्तिक विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं ।
ग्रहरश्मियों का प्रभाव केवल मनुष्यपर ही नहीं पड़ता, किन्तु वन्य, स्थलज एवं उद्भिज बादिपर भी पड़ता है। अमृतरश्मियोंके प्रभावसे जड़ी बूटियों में रोगनिवारण की शक्ति उत्पन्न होती है तथा मुक्ता आदि की उत्पत्ति का कारण भी प्रहरश्मियां है। अतएव जातक पद्धति में कालपुरुषके विचारके अन्तर्गत ग्रहरश्मियों और भचक्र का विश्लेषण किया जाता है । जातकतत्वके अन्तर्गत निम्नलिखित सिद्धान्तोंपर विचार करना आवश्यक है :
१-लग्न-नवांशादि षोडश वर्ग या षड्वर्ग । २-प्रहयोग-प्रहों को विभिन्न स्थितियोंसे उत्पन्न योगविशेष । ३-पह-पति-प्रहों के द्विसंयोगी, त्रिसंयोगी, चतुःसंयोगी आदि भेद और
उनका फल । ४-दृष्टि-हदृष्टिके अनुसार फलादेश । ५ लावल-पढ्बल विचार