Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भारतीय संस्कृतिक विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान जैन आसीजगवंद्यो गर्गनामा महामुनिः । तेन स्वयं निर्णीत यं सत्पाशास्त्र केवली ॥ एतज्ज्ञानं महाज्ञानं जैनर्षिभिरुदाहृतम् ।
प्रकाश्य शुद्धशीलाय कुलीनाय महात्मना । सम्भवतः इन्हीं गर्गके वंशमें ऋषिपुत्र हुए होंगे। इनका नाम ही इस बातका साक्षी है कि किसी ऋषिके वंशज थे अथवा किसी मुनिके आशीर्वादसे उत्पन्न हुए थे । ऋषिपुत्रका एक निमित्त शास्त्र ही उपशलब्ध है। इनके द्वारा रची गई एक संहिताका भी एक मदनरत्न नामक ग्रन्थमें उल्लेख मिलता है। ऋषिपुत्रके उद्धरण वृहत्संहिताकी महोत्पली टीकामें उपलब्ध है।
ऋषिपुत्रका समय वराहमिहिरके पहले होना चाहिए । यतः ऋषिपुत्रका प्रभाव वराहमिहिरपर स्पष्ट है । यहाँ दो एक उदाहरण देकर स्पष्ट किया जायगा ।
ससलोहिवण्णहोवरि संकूण इत्ति होइ णायब्बो। संगामं पुंण धोरं खग्गं सूरो णिवेदई ।।
-ऋषिपुत्र निमित्तशास्त्र शिश रूधिकरनिभे भानो नभस्थले भवन्ति संग्रामाः।
-वराहमिहिर अपने निमित्त शास्त्रमें पृथ्वीपर दिखाई देनेवाले, आकाशमें दृष्टिगोचर होनेवाले और विभिन्न प्रकारके शब्द श्रवण द्वारा प्रगट होने वाले इन तोन प्रकारके निमित्तों द्वारा फलाफल का अच्छा निरूपण किया है। वर्षोत्पात, देवोत्पात, राजोत्पात, उल्कोत्पात, गन्धर्वोत्पाद इत्यादि अनेक उत्पादों द्वारा शुभाशुभत्वकी मीमांसा बड़े सुन्दर ढंगसेकी है।
लग्नशुद्धि या लग्नकुंडिका नामकी रचना हरिभद्रको मिलती है। हरिभद्र दर्शन, कथा और आगम शास्त्रके बहुत बड़े विद्वान् थे । इनका समय आठवीं शती माना जाता है। इन्होंने १४४० प्रकरण-ग्रंथ रचे हैं। इनकी अब तक ८८ रचनाओंका पता मुनि जिन-विजयजीने लगाया है । इनकी २६ रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं ।
___लग्नशुद्धि प्राकृत भाषामें लिखी गयी ज्योतिष रचना है। इसमें लग्नके फल, द्वादश भावोंके नाम, उनसे विचारणीय विषय, लग्नके सम्बन्धमें ग्रहोंका फल, ग्रहोंका स्वरूप, नवांश, उच्चांश आदिका कथन किया गया है। जातकशास्त्र या होराशास्त्रका यह ग्रन्थ है। उपयोगिताकी दृष्टिसे इसका अधिक महत्त्व है। ग्रहोंके बल तथा लग्नकी सभी प्रकारसे शुद्धिपापग्रहोंका अभाव, शुभग्रहोंका सदभाव वर्णित है।
___ महावीराचार्य-ये धुरन्धर गणितज्ञ थे । ये राष्ट्रकूट वंशके अमोघवर्ष नृपतुंगके समयमें हुए थे । अतः इनका समय ई० सन् ८५० माना जाता है। इन्होंने ज्योतिष-पटल और गणितसार-संग्रह नामके ज्योतिष ग्रंथोंकी रचनाकी है। ये दोनों ही ग्रन्थ गणितज्योतिषके हैं ? इन ग्रन्थोंसे इनकी विद्वताका ज्ञान सहज ही में आंका जा सकता है। गणितसारके प्रारम्भमें गणितकी प्रशंसा करते हुए बताया है कि गणितके बिना संसारके किसी भी शास्त्रकी जानकारी नहीं हो सकती है । कामशास्त्र, गान्धर्व, नाटक, सूपशास्त्र, वास्तुविद्या, छन्दशास्त्र,