Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भारतीय संस्कृति के विकास में जैन वाङ्मयका अवदानं
और वाचिराज बताये जाते हैं । ये विष्णुवर्धन राजाकी सभाके प्रधान मण्डित थे अतः इनका समय सन् ११२० के लगभग है । यह कवि होने के साथ-साथ गणित और ज्योतिषके माने हुए विद्वान् थे । 'कर्णाटक कवि चरिते' के लेखकका कथन है कि कन्नड़ साहित्य में गणितका ग्रन्थ लिखने वाला यह सबसे बड़ा विद्वान् था । इनके द्वारा रचित व्यवहार गणित, क्षेत्रगणित, व्यवहाररतन तथा जैन- गणित सूत्रटीकोदाहरण और लीलावती ये गणित ग्रन्थ उपलब्ध हैं ।
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पदम् प्रभ सूरि-नागौरकी तपागच्छीय पट्टावलीसे पता चलता है कि ये वादिदेव सूरिके शिष्य थे । इन्होंने भुवनदीपक या ग्रहभावप्रकाश नामक ज्योतिषका ग्रन्थ लिखा है । इस ग्रन्थ पर सिंहतिलक सूरिने वि सं० १३०६ में एक विवृति लिखी हैं । " जैन - साहित्य नो इतिहास" नामक ग्रन्थमें इन्होंने इनके गुरुका नाम विवुधप्रभ सूरि बताया है । भुवनदीपकका रचनाकाल वि० सं० १२४४ है । यह ग्रन्थ छोटा होते हुए भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है इसमें ३६ द्वार प्रकरण हैं । राशि स्वामी, उच्चनीचदत्व, मित्र-शत्रु, राहुका ग्रह, केतुस्थान, ग्रहोंके स्वरूप, द्वादश भावोंसे विचारणीय बातें इष्टकालज्ञान, लग्न सम्बन्धी विचार, विनष्टग्रह, राजयोगका कथन, लाभालाभ विचार, लग्नेशकी स्थितिका फल, प्रश्न द्वारा गर्भ विचार, प्रश्न द्वारा प्रसवज्ञान, यमजविचार, मृत्युयोग, चौर्य ज्ञान, द्रेष्काणादिके फलोंका विचार विस्तारसे किया है । इस ग्रन्थ में कुल १७० श्लोक हैं । इसकी भाषा संस्कृत है ।
नरचन्द्र उपाध्याय—ये कास दुहगच्छके सिंहसूरके शिष्य थे । इन्होंने ज्योतिष शास्त्र के कई ग्रन्थोंकी रचना की है। वर्तमानमें इनके बेड़ा जातक वृत्ति, प्रश्नशतक, प्रश्न चतुर्विंशतिका, जन्मसमुद्र टीका, लग्नविचार और ज्योतिष प्रकाश उपलब्ध हैं । नरचन्द्र सं० १३२४ में माघ सुदी ८ रविवारको बेड़ाजातक वृत्तिकी रचना १०५० श्लोक प्रभाव में की है । ज्ञानदीपिका नामकी एक अन्य रचना भी इनकी मानी जाती है । ज्योति प्रकाश, संहिता और जातक सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण रचना है ।
अट्ठकवि या अर्हदास--ये जैन ब्राह्मण थे । इनका समय ई० सन् १३०० के आसपास है । अर्हदास के पिता नागकुमार थे । अर्हदास कन्नड़ भाषाके प्रकाण्ड विद्वान् थे । इन्होंने कन्नड़से अट्ठगत नामक ज्योतिषका महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखा है । शक संवत्की चौदहवी शताब्दी में भास्कर नामके आन्ध्र कविने इस ग्रन्थका तेलगू भाषामें अनुवाद किया था । अट्ठमत में वर्षा के चिह्न, आकस्मिक लक्षण, शकुन, वायुचक्र, गृहप्रवेश, भूकूम्प, भूजातफल, उत्पात, लक्षण, परिवेषलक्षण, इन्द्रधनुर्लक्षण, प्रथमगर्भलक्षण, द्रोणसंख्या, विद्युतलक्षण, प्रतिसूर्यलक्षण, संवत्सरफल, ग्रहद्वेष, मेघों के नाम, कुलवर्ण, ध्वनिविचार, देशवृष्टि, मासफल, राहुचन्द्र १४ नक्षत्रफल, संक्रान्ति फल आदि विषयोंका निरूपण किया गया है ।
महेन्द्रसूरि---ये भृगुपुर निवासी मदन सूरिके शिष्य फिरोज शाह तुगलकने प्रधान सभापण्डित थे । इन्होंने नाड़ीव्रतके धरातलमें गोलपृष्ठस्थ सभी वृतोंका परिणमन करके
१ अभूद्भुगपुरे वरे गणकचक्रचूड़ामणि :
कृती नृपति संस्तुतो मदनसूरिनामा गुरुः
तदीयपदशालिना विरचिते सुयन्त्रागमे,
महेन्द्रगुरुणोद्धृताजनि विचारणा यन्त्रजा । यन्त्रराज, अ० ५ श्लोक ६७ |