Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित
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हो जाती है अर्थात् प्रत्येक महीने में ४ अंगुलके हिसाबसे यह छाया क्रमशः बढ़ती और घटती रहती है।
(३) ग्रीक ज्योतिषमें तिथि नक्षत्रादिका मान सौर्य वर्ष प्रणालीके आधारपर निकाला जाता है और पंचांगका निर्माण आज भी इसी प्रणालीपर होता है । किन्तु सूर्यप्रज्ञप्तिमें पंचांगका निर्माण नक्षत्र वर्षके आधारपर किया गया है। सूर्यप्रज्ञप्तिमें समयकी शुद्धि नक्षत्रपरसे ही ग्रहणकी गई है।
(४) युगारम्भ और अयनारम्भ भी सूर्यप्रज्ञप्तिके ग्रीक ज्योतिषसे बिलकुल भिन्न है । मास गणना, अमान्त न लेकर पूर्णिमान्त ली गई है। अतः संक्षेपमें यही कहा जा सकता है कि सूर्यप्रज्ञप्तिके ज्योतिष सिद्धान्त ग्रीक ज्योतिषसे बिलकुल भिन्न और मौलिक है तथा ई० स० से कमसे कम ३०० वर्ष पूर्वके हैं। चन्द्रप्रज्ञप्ति और ज्योतिष करण्डक
इन ग्रन्थोंका विषय प्रायः सूर्यप्रज्ञप्तिसे मिलता है। परन्तु चन्द्रप्रज्ञप्तिमें कीलक छाया और पुरुष छायाओंका पृथक् पृथक् निरूपण है । इस ग्रंथमें २५ वस्तुओंकी छायाओंका विस्तृत वर्णन है । इस ग्रंथमें चन्द्रमाकी १६ तिथियोंमें समचतुरस्र विषमचतुरस्र, आदि विभिन्न आकारोंका खंडनकर समचतुरस्र गोलाकारका वर्णन किया है। इसका कारण यह है कि सुषम सुषुमा कालके आदिमें श्रावण कृष्ण प्रतिपदाके दिन जम्बू द्वीपका प्रथम सूर्य पूर्व दक्षिण कोणअग्निकोणमें और द्वितीय सूर्य पश्चिमोत्तर-वायव्य कोणमें चला था। इसी प्रकार प्रथम चन्द्रमा पूर्वोत्तर-ईशान कोणमें और द्वितीय चन्द्रमा पश्चिम दक्षिण-नैर्ऋत्य कोणमें चला; अतएव युगादिमें सूर्य और चन्द्रमाका समचतुरस्र संस्थान था। पर उदय होते समय ये ग्रह वर्त्तलाकार निकले । अत चन्द्र और सूर्यका आकार अर्द्धकपीठ-अर्द्ध समचतुरस्र गोल बताया है । छाया परसे दिनमानका साधन करते हुए बताया है:
ता अवड्ढ पोरिसिणं छाया दिवसस्स किंगते वा सेसे वा ता ति भागे गए वा ता सेसे वा, पोरिसिणं छाया दिवसस्स किं गए वा सेसे वा जाव चउ भाग गए वा सेसे वा, ता दिवढ पोरिसिणं छाया दिवसस्स किं गते वा सेसे वा, ता पंच भाग गए वा सेसे वा एवं अवदड्ढ रोरिसिणं छाया पुच्छा दिवसस्स भागं छोट्टवा गरणं जाव ता अणुलट्ठि पोरिसिणं छाया दिवसस्य कि गए वा सेसे वा ता एक्कूण वीस सतं भागे वा सेसे वा सातिरेग अगुणसट्ठि पोरिसिणं छाया दिवसस्स किं गए वा सेसे वा ताणं किं गए किंचि विगए वा सेसे वा। चं० प्र० ९५
अर्थात्- जब अर्ध पुरुष प्रमाण छाया हो उस समय कितना दिन व्योत हुआ और कितना शेष रहा ? इस प्रश्नका उत्तर देते हुए कहा है कि ऐसी छायाकी स्थिति में दिनमानका तृतीयांश व्यतीत हुआ समझना चाहिये । यहाँ विशेषता इतनी है कि यदि दोपहरके पहले अर्ध पुरुष प्रमाण छाया हो तो दिनका तृतीय भाग गत और दो तिहाई भाग अवशेष तपा दोपहरके बाद अर्ध पुरुष प्रमाण छाया हो तो तिहाई भाग प्रमाण दिन गत और एक भाग प्रमाण दिन शेष समझना चाहिये । पुरुष प्रमाण छाया होनेपर दिन का चौथाई भाग गत और तीन चौथाई भाग शेष, डेढ़ पुरुष प्रमाण छाया होनेपर दिनका पंचम भाग' गत और चार