Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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ज्योतिष एवं गणित
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यह प्रधान केन्द्र है । बाह्य आनन्ददायक वस्तुओंके द्वारा यह क्रियाशील होता है और पूर्वकी आनन्ददायक अनुभवोंकी स्मृतियोंको जागृत करता है । वांछित वस्तुकी प्राप्ति तथा उन वस्तुओंकी प्राप्ति के उपायोंके कारणोंकी क्रियाका प्रधान उद्गम है । यह प्रधान रूपसे इच्छाओंका प्रतीक है ।
अनात्मिक दृष्टिकोण से यह सैनिक, डाक्टर, रसायनशास्त्रवेत्ता, नापित, बढ़ई, लुहार, मशीनका कार्य करनेवाला, मकान बनानेवाला, खेल एवं खेलोंके सामान आदिका भी प्रतिनिधि है । शारीरिक दृष्टिकोणसे बाहरी सिर- खोपड़ी, नाक एवं गालका प्रतीक है । इसके द्वारा संक्रामक रोग, धाव, खरोंच, ऑपरेशन, रक्तदोष, दर्द, उदरपीड़ा आदिका भी विचार किया जाता है । आत्मविश्वास, क्रोध, युद्धवृत्ति एवं प्रभुता आदिका भी प्रतिनिधि है ।
दर्शन मोहनीय उपशम, क्षय या क्षयोपशमका प्रतीक शनि है । यह समस्त ग्रहों में विशेष महत्त्वपूर्ण है । मानव प्राणी सांसारिक विषयभोगोंमें आसक्त हो, आधिभौतिक और आधिदैविक साधनों से त्रस्त हो जब वह आत्माकी ओर उन्मुख होता दो दर्शन मोहनीय कर्मके प्रतीक शनिका फलादेश माना जाता है । इस ग्रहकी दशा, महादशा, अन्तर्दशा आदिमें क्लेश, दुःख एवं विपत्तियाँ प्राप्त होती हैं । अतः दर्शन मोहनीयके प्रतीक शनिद्वारा बाह्य और आन्तरिक चेतनाका परिज्ञान प्राप्त किया जाता है । प्रत्येक नवजीवन में आन्तरिक व्यक्तित्वसे जो कुछ प्राप्त होता है और जो मनुष्यके व्यक्तिगत जीवनसे मिलता है, उससे यह मनुष्यको वृद्धिगत करता है । यह प्रधान रूपसे अहम् भावनाका प्रतीक होता हुआ भी व्यक्तिगत जीवनके विचार, इच्छा और कार्योंके सन्तुलनका प्रतिनिधि है । विभिन्न प्रतीक - ग्रहोंके संयोगों द्वारा नाना तरहसे जीवन के रहस्योंको अभिव्यक्त करता है । उच्च स्थानका शनि सम्यक्त्वका सूचक है ।
अनात्मिक दृष्टिकोण से कृषक, हलवाहक, पत्रवाहक, चरवाहा, कुम्हार, माली, मठाधीश, पुलिस ऑफिसर, उपवास करनेवाले साधु-संन्यासी आदिका प्रतिनिधि है । आत्मिक दृष्टिसे तत्त्वज्ञान, विचारस्वातन्त्र्य, नायकत्व, मननशीलता, कार्यपरायणता, आत्मसंयम, धैर्य, दृढ़ता, गम्भीरता, आत्मचिन्तन, सतर्कता, विचारशीलता एवं कार्यशीलताका प्रतीक है । शारीरिक दृष्टिसे हड्डियाँ, नीचेके दाँत, बड़ी आंतें एवं मांसपेशियोंपर प्रभाव डालता है ।
चारित्र मोहनीयके उपशम, क्षय, या क्षयोपशमका सूचक राहु है । यह विचारशक्ति और क्रियाशक्तिका भी द्योतक है । जिस व्यक्तिपर राहुका पूर्ण प्रभाव रहता है, वह व्यक्ति संसार त्यागी बनता है अथवा घरमें उदासीन रूपसे निवास करता है । भक्तियोग, असम्प्रज्ञात समाधि, अनासक्त योग, ध्यानावस्था, आत्मानुभूति आदिका प्रतिनिधि भी इसे माना गया है । इसके द्वारा आजीविका, व्यवसाय, विद्याध्ययन, विदेशगमन आदिका विचार किया जाता है ।
आयुकर्मोदयका प्रतीक चन्द्रमा है । चन्द्रमाके द्वारा मनुष्यकी आयु, अरिष्ट, मानसिक क्षमता, आन्तरिक शक्ति आदिका ज्ञान किया जाता है। शरीरपर इसका प्रभाव विशेष रूपसे पड़ता है । यह अनात्मिक दृष्टिकोणकी अपेक्षासे श्वेतरंग, जलपान, बन्दरगाह, मत्स्य, जल, तरलपदार्थ, नर्स, दासी, भोजन, रजत एवं बैगनी रंग के पदार्थोंपर प्रभाव डालता है ।
कल्पना,
आत्मिक दृष्टिकोणकी अपेक्षासे यह संवेदन, आन्तरिक इच्छा, उतावलापन, भावना, सतर्कता एवं लाभेच्छापर प्रभाव डालता है। शारीरिक दृष्टिकोणकी अपेक्षासे इसका