Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
" रनो सातकंणिस" लिखा है । दूसरी ओर वृषभ, उज्जयिनी नगरीका चिन्ह और घेरे में बोधिवृक्ष हैं ।
उपर्युक्त सिक्कों में अंकित धार्मिक भावना स्पष्टतः जैन है । सूर्यको जैन संस्कृति मे केवलज्ञानका प्रतीक माना गया है । अतएव उपर्युक्त सिक्कोंको निस्संदेह जैन माना जा सकता है । जो राजा अर्धस्वतन्त्र थे, उज्जयिनी के आधीनस्थ थे, वे अपने सिक्कोंमें उज्जयिनी चिन्ह अंकित करते थे । अतएव आन्ध्र देशमें मिले हुए जिन सिक्कों पर सुमेरु पर्वत, उज्जयिनी, सर्प, सिंह, वृषभ, हाथी, बोधिवृक्ष, स्वस्तिक, कलश अंकित हैं, वे सिक्के निश्चय ही जैन हैं ।
पल्लव राजाओं के प्राप्त सिक्कों में; जिनपर सिंहका चिन्ह और संस्कृत और कन्नड़ भाषामें कुछ लिखा मिलता है' ये सिक्के भी जैन हैं । इस वंशका राजा महेन्द्रवर्मन् जैन धर्मानुयायी था ।
वी सातवीं शती के उपरान्त चालुक्यवंशी राजा दो भागों में विभक्त हो गए थे । पूर्वकी ओर चालुक्य राजा कृष्णा और गोदावरी नदीके बीच के प्रदेश में राज्य करते थे और पश्चिम और चालुक्य राजाओंका राज्य दक्षिणापथके पश्चिम प्रान्त में था । इन राजाओंके सिक्के सोने और चाँदीके मिलते हैं । इन सिक्कोंकी धार्मिक भावना यद्यपि वैदिक ही है, परन्तु जैन संस्कृतिका प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है । इस वंशका प्राचीन लेख धारावाड़ जिलेके आदुर ग्रामसे मिला है, जिसमें राजा कीर्तिवर्मा प्रथम द्वारा नगर सेठ के बनाये जैन मंदिरको दान देनेका उल्लेख है । इस वंशके राजाओंने जैन गुरुओंको भी दान दिये थे ।
कदम्बवंशके प्राप्त सोनेके सिक्कों में कमलकी भावना अंकित है । इस वंश में मृगेशवर्मा - से लेकर हरिवर्मा तक जैन धर्मानुयायी थे । उन्होंने कमल द्वारा मोक्षलक्ष्मीकी भावनाको व्यक्त किया है । जैनके चौबीस तीर्थंकरों में कमल पद्मप्रभुका चिन्ह है । कमल प्रतीकको रखनेका एक अन्य हेतु यह भी है कि लौकिक दृष्टिसे यह उत्साह, आनन्द, स्फूर्ति और कर्त्तव्यपरायणताका द्योतक है । कदम्बवंशके राजाओंकी मुद्राओं में इसलिये दो प्रकारके चिन्ह मिलते हैं, कि उनमें आदिम कई राजा वैदिक धर्मानुयायी थे । इस वंशके जो राजा वैदिक धर्मका पालन करते थे उनमें सिक्कोंमें बारह अवतार अथवा लक्ष्मीकी मूर्ति मिलती है । जैन राजाओंने अपनी धर्मभावनाकी अभिव्यक्तिके लिए कमलको प्रतीक चुना था ।
यादव वंशी राजाओंके राज्य देवगिरी और मैसूरके द्वारसमुद्र नामक स्थानमें थे । देवगिरीमें राज्य करने वाले राजाओंके सोने, चांदी और ताँबेके सिक्के मिले हैं, परन्तु इन सभी सिक्कोंपर हिन्दू धार्मिक भावनाका प्रतीक गरुड़ अंकित किया गया है ।
मैसूर के द्वारसमुद्र नामक स्थानमें भी इस वंश के राजाओंके सोने और ताँबे के सिक्के मिले हैं । ताँबे के सिक्कोंपर एक ओर सिंहकी मूर्ति और दूसरी ओर कन्नड़ लेख हैं । इस स्थानके यादववंशी राजाओंके सिक्कोंपर नामके बदले में उपाधि मिलती है; जैसे- श्रीतलकाडु गोण्ड अर्थात् तलकाडु विजयी । उपर्युक्त द्वारसमुद्र से प्राप्त सिक्के जैन हैं; क्योंकि इनमें जैन प्रतीकोंका व्यवहार किया गया है ।
1. Indian Coins P. 37.
2. Elliott's south Indian Coins P. 152, Nos 87-89; 90-91.