Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
View full book text
________________
भक्ति, संगीत एवं ललित कलाएँ
२ ३७
पद्मानन्द काव्यमें सप्तस्वरोंका बहुत सुन्दर निरूपण किया गया है। बताया है कि मयूरकी ध्वनि के समान षड्ज स्वर, बकरीकी ध्वनिके समान कोमल गान्धारर
१
गान, क्रौंचपक्षी hot saf समान मध्यम स्वर, वसन्तके समय कोकिलाके गानके समान पंचम स्वर, घोड़ेके हींसने की ध्वनिके समान मनोरम धैवत" स्वर, हथिनीको काम-विह्नल करनेके समय हाथी द्वारा की जाने वाली मनोरम चिंघाड़े ध्वनिके समान निषाद स्वर और गाय या वृषभकी डकारके समान ऋषभ स्वर होता है । इन सप्त स्वरोंका आरोह-अवरोह मनोरम और मधुर संगीतका सृजन करता है । इसी काव्यमें बताया है कि वीणादि वाद्यों से तत ध्वनि, तालादिसे घन ध्वनि, वंशादिसे सुषिर ध्वनि और मूर्जादिकसे आनन्द ध्वनि उत्पन्न होती है ।
गीतके नियमों का वर्णन करते हुए पद्मानन्द काव्यके लेखक अमरचन्द्रने बताया है कि गीत आदिमें नकार, मध्य में घकार और अन्तमें हकारका निषेध है । आदिमें नकारके रहनेसे गायक और श्रोताका सर्वस्व नष्ट हो जाता है । मध्यमें घकारका प्रयोग रहनेसे घात होता है और अन्त में हकारके रहनेसे लक्ष्मीका विनाश होता हैं । लिखा है
उद्गानादौ नकारो न मध्ये धकार एव च । अन्ते हकारो नाकार्यस्त्रयो गीतस्य वैरिणः ॥
गाने के समय एकाग्रचित्त होना आवश्यक माना गया है। कण्ठका कोमल होना एवं मूर्च्छना के समय दृष्टिका संकोचन और गलेमें लोच रहना माधुर्य गुणका अभिव्यंजक है । वाद्य और नृत्यके संयोगका चित्रण अनेक स्थलोंपर आया है। महाकवि धनञ्जयने लिखा है - " मंगलके लिए बजाये गये पटह आदि वाद्य जोर-जोर से बजने लगे । वेश्याओंके झुण्डके झुण्ड राजमहलपर आकर नृत्य करने लगे । नृत्योंके आचार्य नट, गायनाचार्य तथा अभिनयाचार्योंके कुशल वंशधर आकर मंगल पाठ कर रहे थे ।" स्पष्ट है कि वाद्य पूर्वक नृत्य सम्पन्न होता था । वाद्योंकी ध्वनि के आधारपर ही पद ध्वनिका संचालन किया जाता था । वादिराजने गीत, नृत्य और वाद्यका उल्लेख करते हुए बतलाया है - " गोपियाँ सुन्दर वेणुओंके शब्दोंसे प्रतिध्वनित कोमल मधुर गीत गाने लगीं और हर्ष विभोर होकर नृत्य करने लगीं ।" हम्मीर काव्यमें धारा देवीके मयूर नृत्यका वर्णन आया है । वर्धमान चरितमें अलसायी हुई वधुओंके नृत्यका निर्देश है । पद्मानन्द काव्य में हल्लीसक— हेलया लक्ष्यते नृत्यतेऽस्मिन्निति हल्लीसकं—स्त्रीणां मण्डलेन नृत्यम्—अर्थात् स्त्रियाँ मण्डलाकार रूपमें जो नृत्य करती हैं, का कथन किया है। लास्य नृत्यका कथन भी इसी पद्य में है । गाते हुए नृत्य करनेका निर्देश जैन कुमारसम्भवमें आया हैं—
१०
२. वही ८।६१, ४. वही ८।६३
१. पद्मानन्द ८७,
३. वही ८६२,
५. वही ८।६४,
७. वही ८।६६
९. पार्श्वनाथ चरित ४। १३४- १३५
१०. पद्मानन्द - ९।१०२
६. वही, ८।६५,
८. द्विसन्धानकाव्य, ४।२२ तथा ४।२४