Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भक्ति, संगीत एवं ललित कलाएँ
मूल निवासी थे, पर उनकी ७वीं-८वीं पीढ़ीके पूर्वज माण्डवगढ़ में आकर रहने लगे थे । इनके वंश में मन्त्री पद भी परम्परागत चला आता था । आलम शाह विद्याप्रेमी था । अतः मण्डनपर उसका विशेष स्नेह था । संगीत मण्डन अभीतक अप्रकाशित है । इसकी हस्तलिखित प्रति मिलती है ।
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जैन ग्रन्थावलीसे संगीत दीपक, संगीत रत्नावली और संगीत सहपिंगलकी सूचना मिलती है । परन्तु इन ग्रन्थोंके विषय में विशेष जानकारी नहीं मिलती है । प्रायोगिक ग्रन्थ
संगीत सिद्धान्तों का प्रयोग करनेके लिये संस्कृत, हिन्दी आदि भाषाओं में प्रायोगिक ग्रन्थ भी उपलब्ध होते हैं । जयदेवके गीत गोविन्दके अनुकरणपर अभिनव पण्डिताचार्य चारुकीर्तिने ई० सन् १४०० - १७५८ के मध्य यह ग्रन्थ लिखा है । 'गीत वीतराग' प्रबन्धात्मक गीति काव्य है । इसमें भगवान् ऋषभदेवके दश जन्मोंका आख्यान गीतों में किया गया है । इसमें २४ प्रबन्ध गीत हैं । कथावस्तु आदि तीर्थंकर ऋषभदेवसे सम्बद्ध है । इसमें गुर्जरी राग, देशी राग, वसन्त राग, रामक्रिया, माड़व गौडी राग, कन्नड़राग, आसावरी राग, देवरालिराग, गुण्डक्रिया राग, पञ्चम राग और सौराष्ट्ररागमें गीत निबद्ध हैं । इन रागों में अष्टताल, यतिताल, तालत्रिउड, प्रतिभनृताल, एकताल, यति-यतिताल आदि तालें प्रयुक्त हैं । रागों की उत्पत्ति स्वरोंके संयोग से बतलायी है । स्वर समूहों को यथाविधि गान वर्ण कहा है । वर्ण चार हैं— स्थायी, आरोही, अवरोही और संचारी । रागोंके चार अङ्ग बताये हैंरागाङ्ग, भाषाङ्ग, क्रियाङ्ग और उपाङ्ग । इन चारों अङ्गों का प्रयोग गीत वीतरागके प्रबन्ध गीतोंमें किया गया है । तालके कोल, मार्ग, क्रियाङ्ग, ग्रह, जाति, कला, लय, यति और प्रस्तार इन दस प्राणों का भी संयोजन किया गया है ।
प्रयोगात्मक गीतिकाव्य में जिनसेनके पाश्वभ्युदयकी भी चर्चा की जा सकती है । जिनसेनने मेघदूतके पदोंको लेकर समस्यापूर्तिद्वारा शान्तरसका प्रणयन किया है । पद्योंमें रागात्मकता अत्यन्त सघन है ।
मुसलमान बादशाहों, ग्वालियर के नरेशों आदिका अवलम्बन पाकर १५वीं १६वीं शताब्दी से हिन्दी में संगीतके प्रयोगात्मक अनेक ग्रन्थ लिखे गये । सूर, तुलसी, मीरा, कबीर आदिके पदोंके समान हो जैन कवियोंने भी प्रयोगात्मक हिन्दी पद्य लिखे ।
भैया भगवतीदासने विभिन्न राग रागनियोंका समन्वय करते हुए आसावरी रागमें निम्नपद गाया है
कहा परदेशीको पतियारो ।
मनमाने तब चलें पंथको, साँझ गिने न सकारो ।
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कुटुम्ब छोड़ इतहि पुनि त्याग चले तन प्यारो ॥ दूर दिशावर चलत आपही, कोउ न रोकन हारो । कोऊ प्रीति करो किन कोटिक, अन्त होयगो न्यारो ॥ धन सों राचि धरम सौ भूलत, झूलत मोह मंझारो । हि विधि काल अनन्त गमायो, पायो नहिं भव पारो ॥