Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भक्ति, संगीत एवं ललित कलाएँ
२४९ इससे नयनानन्दके मनमें चिन्ता उत्पन्न हुई और उन्होंने विचार किया कि कौन सा उपाय किया जाये जिससे चन्दनलाल धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर सके । नयनानन्दने चन्दनलालकी अभिरुचि अवगत करनेका प्रयास किया और चार महीने तक वे उसके कार्योंका निरीक्षण करते रहे । एक दिन उन्होंने देखा कि रात्रिके १०-११ बजे चन्दनलाल कान्हड़ा देशके स्वरोंमें एक माल्हारको अलापता हुआ चला जा रहा है। उसके स्वरमें अपूर्व लालित्य था। आलापकी मधुरिमाको सुनकर गन्धर्व और किन्नर भी मोहित हो जाते थे। अतः नयनानन्द भी उसकी मधुर ध्वनिसे आकृष्ट होकर उसके पास पहुँच गये और उन्होंने चन्दनलालसे कहा-तुम्हारा स्वर बहुत प्रिय लग रहा है, थोड़ी देर बैठ कर तुम इसे गाओ। चन्दनलाल झूम-झूम कर आलापने लगा। जब उसका गीत पूरा हुआ तो नयनानन्दने उससे पूछा कि क्या तुम्हें कोई जैन भजन या पद भी याद है ? तुम उसे भी रागोंमें गा सकते हो ? चन्दनलालने उत्तर दिया-मुझे जैन भजन याद नहीं। मैं तो ठुमरी, भजन, गजल, ध्रुपद, तराना, नौटंकी, सरवण, मरहटी तुर्रा, कलंगी, चौबोला आदि गाता हूँ और ये ही मुझे पसन्द हैं । नयनानन्दने पुनः कहा-यदि तुम्हारे इच्छानुसार विभिन्न रागोंमें जैन पदोंकी रचना की जाये तो क्या तुम मन्दिरमें आकर प्रतिदिन पद गाओगे ? चन्दनलालने अपनी स्वीकृति दे दी। नयनानन्दने विभिन्न राग-रागिनियोंमें पदोंकी रचना की और सितारपर उन पदोंका प्रदर्शन किया जाने लगा। चन्दनलालको ये पद इतने अधिक रुचिकर हुए कि वह अपनी समस्त कुप्रवृत्तियोंका त्याग कर भजन गाने में प्रवृत्त हो गया। चन्दनलालके अन्य साथियोंमें ८ व्यक्ति और सम्मिलित थे । इस प्रकार उन सबने मिलकर एक नयी संगीत शैलीका प्रचार किया । नयनानन्दने २४ अखाड़ों में २४ तीर्थकरोंके पदोंकी रचना की। सभी तीर्थंकरोंके भजन पृथक्-पृथक् रागमें निबद्ध किये गये । ताल, लय, स्वर, ग्राम आदिका पूरा निर्वाह किया गया। इस प्रकार नयनानन्द कविका नैनसुख विलास गायन शिक्षाका ग्रन्थ है और इसके सभी पद संगीतज्ञोंके लिये आकर्षक हैं । यहाँ उदाहरणार्थ ठुमरी शैलीमें एक पद दिया जाता है
__ सब करनी दया बिन थोथी रे ॥ जीव दया बिन करनी निरफल, निष्फल तेरी पोथी रे ।। चन्द्र बिना जैसे निष्फल रजनी, आब बिना जैसे मोती रे॥ नीर बिना जैसे सरवर निरफल, ज्ञान बिना जिया ज्योति रे ।
छाया हीन तरोवर की छबि, नैनानन्द नहिं होती रे ।
इस प्रकार हिन्दी में प्रयोगात्मक संगीत काव्य लिखे जाते रहे हैं । बिलावल, कल्याण, खम्माच, भैरव, पूर्वी, आसावरी, तोड़ी आदि थाटोंमें भी पदोंकी रचना जैन कवि करते रहे हैं। नयनानन्दने सन्ध्या छह बजेसे रात्रि नौ बजे तक ईमनकल्याण, मालश्री, और केदाराका प्रयोग बतलाया है.। प्रातः काल छहसे नौ बजे तक बिलावल, ईमनी और नटविलावल, टोड़ी आदिका प्रयोग बताया गया है। दिनमें १२ बजे ३ बजे तक गौड़ सारंग, त्रिवेणी, वृन्दावनी सारंग आदि रागोंके गानेका विधान किया है । मध्यरात्रिमें सिन्दूरा सैन्धवी, विहाग, मालकोष आदिके गानेका विधान है ।