Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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२३८ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
सुश्रुताक्षरपथानुसारिणी ज्ञातसंमतकृताङ्गिकक्रिया ।
आत्मकर्मकलनापटुर्जगौ कापि नित्यनिरता स्वमार्हतम् ।। प्रद्युम्न चरितमें महासेनने "नृत्यप्रगीतैरुरुजयनिनदैर्वशवीणामृदंगः" (प्रद्युम्न चरित-१४॥ ४७) में संगीत और वाद्य पूर्वक नृत्य करनेका उल्लेख किया है। मौनरूपमें भावोंका प्रदर्शन करनेके लिए वाद्य ध्वनिके साथ भी नृत्य किया जाता था। यशोधर चरितमें वादिराजने मौन नृत्य और गीत नृत्य इन दोनोंका पृथक उल्लेख किया है । मनोहर गीत ध्वनि पूर्वक सरस नृत्य किये जानेको गीत नत्य और अंगाभिनयको प्रदर्शित करते हुए भावावलीका प्रकटीकरण मौन नृत्य है । वाद्य ध्वनि का प्रयोग दोनों ही प्रकारके नृत्योंमें किया जाता है ।
क्षत्रचूडामणि और गधचिन्तामणि-इन दोनों ही काव्योंके तृतीय लम्बमें वीणा स्वयंवरका उल्लेख आया है । बताया है कि राजपुरी नगरीका श्रीदत्त सेठ जहाजी बेड़ा लेकर व्यापारके लिए गया। वह सामान लेकर लौट रहा था कि उसका जहाज समुद्रमें डूबने लगा। उसे वहाँ एक स्तूप मिला जहाँ एक व्यक्ति छिपा हुआ था। उसने कहा-"यह गान्धार देश है । यहाँ की नित्यालोका नगरीमें गरुड़ वेग विद्याधर राजा रहता है। इसको पुत्री गन्धर्वदत्ता है । जन्मके समय ज्योतिषियोंने भविष्यवाणी की है कि राजपुरी नगरीमें जो इसे वीणावादनमें पराजित करेगा वही इसका पति होगा । आपका जहाज डूबा नहीं है । आपको यह भ्रम हुआ है । आप गन्धर्वदत्ताको अपने जहाजमें बैठाकर राजपुरी ले चलिये" ।
गरुड़वेग विद्याधर राजाके अनुरोधसे श्रीदत्तने गन्धर्वदत्ताको अपने जहाजमें बैठाकर राजपुरीमें ले आया । यहाँ काष्ठांगारकी स्वीकृतसे स्वयंवरकी योजना की गयी जिसमें वीणावादनकी शर्त रखी गयी । जो राजकुमार गन्धर्वदत्ताको वीणावादनमें पराजित कर देगा उसीके गले में वह वरमाला डालेगी और उसीके साथ गन्धर्वदत्ताका विवाह होगा । देश-विदेशके अनेक राजकुमार इस स्वयंवरमें सम्मिलित हुए, पर सभी गन्धर्वदत्ता द्वारा पराजित किये गये । अन्त में जीवन्धर कुमारने अपनी घोषवती वीणा बजायी और गन्धर्वदत्ताको पराजित कर उसके साथ विवाह किया । गद्य चिन्तामणिमें लिखा है-'तेन च श्रवणसुभगगीतिगर्भमुद्भूतरागमनुगतग्रामं वादयता वल्लकों विजिग्ये विद्याधरराजतनया ।"
जैन संस्कृत काव्योंमें ग्राम्य गीतोंका भी निर्देश आया है। प्रायः सभी काव्योंमें कृषि की रक्षा करती हुई गोपांगनाएं मधुर स्वरसे गीत गाती हैं । इनके गीतोंका श्रवण करनेके लिए पथिक रास्ता चलना छोड़कर गोत सुनते रहते हैं । कृषक बालाओंकी कोमल कण्ठ ध्वनि सुनकर सूर्य और चन्द्रके विमान भी रुक जाते हैं । उनको स्वरतन्त्री इतनी मधुर और लयपूर्ण होती है जिससे गीत सुननेमें परमानन्दको प्राप्ति होती है । राग जनमानसको असीम आनन्दसे भर देता है। वस्तुका सौन्दर्य गोत और वाद्योंके माध्यमसे अलौकिक आनन्दका सृजन करता है । भोली कृषक अंगनाएँ भी संगीतको सप्राण बनानेके लिए सौन्दर्यको भावका मूल कारण बताया है। उनके संगीतमें हृदयको स्पर्श करने तथा हृद्तन्त्रियोंको झंकृत करनेकी अपूर्व
२. जैन कुमारसम्भव-१०।६१