Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भक्ति, संगीत एवं ललित कलाएँ
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इसी पर्वमें लीला नृत्य, सूची नृत्य, बहुरूपिणी नृत्य, चक्र नृत्य आदि अनेक नत्योंका उल्लेख आया है। नृत्य शास्त्रको दृष्टिसे आदिपुराणका १४ वां पर्व विशेष महत्त्वपूर्ण है। इस सन्दर्भ में एक आनन्द नामक नृत्यका उल्लेख आया है, जो विशेष प्रकारके वाद्यों और मायनके साथ सम्पन्न किया जाता था।
तदा पुष्करवाद्यानि मन्द्रं दध्वनुरक्रमात् । दिक्तटेषु प्रतिध्वानान् आतन्वानि कोटिशः॥ वीणा मधरमारेणुः कलं वंशा विसस्वनुः । गेयान्यनुगतान्येषा समं तालेरराणिषुः ॥ उपवादकवाद्यानि परिवादकवादितैः। बभूवुः सङ्गतान्येव साङ्गत्यं हि सयोनिषु ॥ काकलोकलमामन्द्रतारमूर्च्छनमुज्जगे ।
तदोपवीणयन्तीभिः किन्नरोभिरनुल्वणम् ॥' इसके अतिरिक्त संगीत गोष्ठियोंका कथन भी आदि पुराणमें आया है । गीतगोष्ठो, वायगोष्ठी, नृत्यमोष्ठो, वीणागोष्ठी आदि अनेक गोष्ठियोंका कथन आया है । आदि पुराणमें वोणा, मुरज, पणव, शंख, तूर्य, काहला, घण्टा, कण्ठीरव, मुबंग, दुन्दुभि, तुणव, महापटह, पटह, पुष्कर, भेरी आदि वाद्योंके वादनका निर्देश मिलता है । तन्त्रीगत वाद्योंमें वीणाका महत्त्वपूर्ण स्थान था। अलावणी, ब्रह्मवीणा, विपञ्ची, बल्लकी, घोषवती आदि कई प्रकारको वीणाएँ उल्लिखित हैं । आदि पुराणमें वीणाके स्वरको सबसे उत्तम बतलाया है । देवियाँ माता मरुदेवी से प्रश्न पूछती हैं कि स्वरके समस्त भेदोंमें उत्तम स्वर कौन सा है ? उत्तर देती हैं कि वीणाका स्वर समस्त वाद्योंमें उत्तम है। स्वयं आदि तीर्थंकर ऋषभदेवने अपने पुत्र वृषभसेनको गीत, वाद्यरूप गन्धर्व शास्त्रको शिक्षा दी थी।
___ आदिपुराणमें संगीतके लिये गान्धर्व संज्ञा प्राप्त होती है । गायनका नियम है कि प्रथम मन्द स्वरसे क्रमशः मध्य एवं तार स्वरमें गोतका उच्चारण करना चाहिये। गीतके तीन आकार-पस्बोष, अष्टगुण एवं तीन प्रकार हैं । जो ज्ञानपूर्वक गीत गाया जाता है, उसे ललित गीत कहते हैं । तीन आकारोंके अन्तर्गत मदुगीतध्वनि, तीव्रगीतध्वनि एवं भययुक्तहल्की गोत ध्वनि आती है । षट्दोषोंमें भयभीत होकर गाना, शीघ्र गाना, धीरे गाना, तालरहित गाना, काक स्वरसे गाना, नाकसे गाना इत्यादि है । गायनके आठ गुण निम्न प्रकार है
१. पूर्णकलासे गाना २. रागको रंजक बनाकर गाना ३. अन्य स्वर विशेषोंसे अलंकृत करके गाना ४. स्पष्ट गाना ५. मधुर स्वर युक्त गाना ६. तालवंशके स्वरसे मिलाकर गाना
१. आदिपुराण, चतुर्दश पर्व, पद्य ११५-११८ ॥