Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
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अपराह्नकालमें रोहिणी नक्षत्रके रहते हुए सहेतुक वनमें हुई कहा है । उत्तर पुराण में पौष शुक्ला एकादशी' सन्ध्या समय रोहिणी नक्षत्रको केवलज्ञानकी उत्पत्तिका काल कहा है । हिन्दी कवि वृन्दावनने पौष शुक्ल चतुर्थी और मनरंगलालने पौष शुक्ला एकादशीको केवलज्ञानकी उत्पत्ति तिथियाँ लिखा है ज्योतिष की दृष्टिसे विचार करनेपर तिलोयपण्णत्त में निरूपित तिथि अशुद्ध प्रतीत होती है, क्योंकि पोष शुक्ला पूर्णिमाको चन्द्रोद के समय पुष्य नक्षत्र रहता है । इस दिन सूर्योदय कालमें पुनर्वसु रह सकता है, किन्तु चन्द्रोदय के सम पुष्यका आ जाना नियामक है । पौष शुक्ला चतुर्दशीको रोहिणी नक्षत्र रहनेके कारण पूर्णिमाको सूर्योदय कालमें पुनर्वसु और चन्द्रोदय काल में पुष्यका आना असंभव है । यह स्थिति मृगशिरा और आर्द्राकी रहेगी । एकादशीको रोहिणी नक्षत्रके रहनेपर पूर्णिमाको पुष्य आ जाता है, जो सूर्योदय कालमें चन्द्रोदयकाल तक रहता है । अतएव उत्तर पुराण और कवि मनरंगकी मान्यता शुद्ध है । ज्योतिषके द्वारा अजितनाथ भगवान्की केवलज्ञान तिथि पौष शुक्ला एकादशी ही आती है । कवि वृन्दावनकी मान्यता तो और भी अशुद्ध है ।
भगवान् अजितनाथकी निर्वाण प्राप्ति तिथि तिलोय पण्णत्ति में चैत्र शुक्ला पञ्चमीके दिन पूर्वाह्न में भरणी नक्षत्रके रहते हुए बतलायी गयी है । उत्तर पुराणमें चैत्र शुक्ला पञ्चमी", रोहिणी नक्षत्र तथा प्रातःकालका समय निर्वाणका काल माना है । हिन्दी कवियों ने भी इसी तिथिको इन अजितनाथ भगवान्की केवलज्ञान तिथि माना है । ज्योतिषकी प्रक्रिया द्वारा विचार करनेपर प्रतीत होता है कि पञ्चमीको भरणी नक्षत्र ही आता है, रोहिणी नहीं । क्योंकि इस महीनेके शुक्लपक्षमें दो सप्तमा तिथियाँ हुई थीं । अतः चैत्री पूर्णिमाके चित्रानक्षत्र से विपरीत क्रम (उल्टी विधि) द्वारा गणना करनेपर रोहिणी नक्षत्र ग्यारहवाँ हुआ और भरणी बारहवाँ । पञ्चमीसे बढ़ी हुई ( वृद्धिगत) तिथि सहित गिननेपर पूर्णिमा तक बारह संख्या आती है । अतः पञ्चमीको भरणी नक्षत्रका ही रहना शुद्ध है । उत्तरपुराणकारने रोहिणीका पाठ, अन्य सभी कल्याणक इसी नक्षत्र में हुए है, इसीलिए रखा है । अतएव सर्व सम्मत तथा ज्योतिषकी प्रक्रिया द्वारा आगत चैत्र शुक्ला पंचमी इनकी निर्वाण तिथि है ।
१. छाद्मस्थेन नयन्नब्दान्पौषे द्वादशशुद्धधीः ।
शुक्लैकादश्यहः प्रान्ते रोहिण्यामाप्ततामगात् ।। —उत्त० ४८-४२ २. पौषसुदी तिथि चौथ सुहायो ।
त्रिभुवनभानु सुकेवल जायो ॥ - वृन्दावन चौबीसी विधान
३. पूष सुदी एकादशी, ता दिन केवल पाय । - मनरंग - सत्यार्थयज्ञ ४. चेत्तस्स सुद्धपंचमिपुव्वण्हे भरणिणामरिक्खम्मि ।
सम्मेद अजियजिणे मुत्ति पत्तो सहस्ससमं । - तिलो० ४, ११८६ ५. चैत्रज्योत्स्नापक्षे पंचम्यां रोहिणीगते चन्द्रे ।
प्रतिमायोगं बिभ्रत्पूर्वाह्णेऽवाप मुक्तिपदम् ।। उत्त० ४८ १०, ५२ श्लो०
६. पंचमि चैतसुदी निरवाना । निजगुनराज लियो भगवाना ॥ - वृन्दावनकृत चोबीसी विधान चैत्र सुदी पाच दिना, सम्मेद शिखरते वीर । मनरंग सत्यार्थयज्ञ