Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
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ऐतिहासिक दृष्टिसे जैन चित्रकलाके सम्बन्ध में विचार करनेपर ज्ञात होता है कि ई० सन्से कई शताब्दी पहले गुफाओं, मन्दिरों एवं धर्मस्थान मठों आदिमें भितिपर चित्रांकन करनेकी प्रथा जैनोंमें थी । ये प्राचीन ध्वंसावशेष आज भी जैन चित्रकला के महत्त्व और भव्यताके रहस्यको सुरक्षित किये हुए हैं। मध्य प्रान्त के अन्तर्गत सरगुजा स्टेटमें रामगिरि नामकी पहाड़ी है, जिसपर जोगीमारा नामक गुफा चित्रित है । इसकी ' प्रधान चौखटपर एक अत्यन्त सुन्दर, भावपूर्ण चित्र अंकित है । प्राचीन भारतीय चित्रकलामें रंगों और रेखाओं की दृष्टिसे यह अपूर्व है ।
इस चित्र परिचय में मुनि श्री कान्तिसागरजीने 'जैनाश्रित चित्रकला' नामक लेखमें लिखा है 2 -
१ एक वृक्षके निम्न भागमें एक पुरुषका चित्र है। बाईं ओर अप्सराएँ व गन्धर्व हैं । दाहिनी ओर सुसज्जित जुलूस खड़ा है ।
२ अनेक पुरुष, चक्र तथा विविध प्रकारके अलंकार हैं ।
३ आधा भाग अस्पष्ट है । एक वृक्षपर पक्षी, पुरुष और शिशु हैं। चारो ओर मानव - समूह उमड़ा हुआ है, केशोंकी ग्रन्थि लगी हुई है ।
४ पद्मासनस्थ पुरुष है । एक ओर मन्दिरकी खिड़की तथा तीन घोड़ोंसे जुता हुआ
रथ है ।
अतः स्पष्ट है कि इस चित्रमें जैन मुनिकी दीक्षाका वर्णन अंकित किया गया है।
ई० ६००-६२५ के पल्लव वंशीय राजा महेन्द्रवर्मनके द्वारा निर्मित पदुकोटा स्थित निवासल्ली गुहा चित्र जनकलाके अद्भुत निदर्शन हैं । यहाँके चित्रों में भाव आश्चर्य ढंग स्फुट हुए हैं और आकृतियाँ बिल्कुल सजीव मालूम पड़ती हैं । समस्त गुफा कमलोंसे अलंकृत है । सामनेके खम्भोंको आपसमें गुन्थी हुई कमलनालकी लताओंसे सजाया गया है । छतपर तालाबका दृश्य अंकित है, उसमें हाथियों, जलविहंगमों, मछलियों, कुमुदिनी और पद्मोंकी शोभा निराली है । तालाब में स्नान करते हुए दो व्यक्ति – एक गौर और दूसरा श्याम वर्णके चित्रित किये गये हैं । इसी गुफाके एक स्तम्भपर एक नर्तकीका सुन्दर चित्र है, इस चित्रमें चित्रित नर्तकीको भावभंगिमा देखकर लोगोंको आश्चर्यान्वित होना पड़ता है । नर्तकीके कमनीय अंगोंका सन्निवेश चित्रकारने बड़ी खूबीके साथ किया है। यह मंडोदक चित्र है । सित्तन्नवासलकी चित्रकारी अजन्ताके समान सुन्दर और अपूर्व है' ।
उड़ीसा भुवनेश्वरकी गुफाओंमें भी जैन चित्र अंकित हैं, इन चित्रोंके सौन्दर्य और भावाभिव्यञ्जनं अद्भुत हैं । भित्ति चित्रोंकी परम्परा जैनोंमें बहुत समय तक चलती रही । मूडबिद्रीके चन्द्रनाथ चैत्यालयके खम्भोंपर उत्कीर्ण प्राकृतिक चित्र अपनी आभासे संसारको आश्चर्यमें डाल सकते हैं । इन चित्रोंमें बाह्य आकर्षण, प्रकृतिका सादृश्य, उसकी रमणीयता, कम्पन और नैसर्गिक प्रवाह वर्तमान है ।
१. देखें — भारतकी चित्रकला ११-१२
२. विशेष जाननेके लिये देखें - विशालभारत नवम्बर १९४७