Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
View full book text
________________
जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
१६९ शुक्ला नवमी' को मघा नक्षत्रके रहते हुए पूर्वाह्नकालमें सहेतुक वनमें हुआ है । उत्तरपुराणमें भी वैशाख शुक्ला नवमी को ही दीक्षा ग्रहण करनेका कथन है । इस प्रकार पुराणके अनुसार भी इस दिन मघा नक्षत्र था। वृन्दावन ने सुमतिनाथ भगवान्के तपकल्याणककी तिथि चैत्र शुक्ला एकादशी और मनरंग ने वैशाख शुक्ला नवमी बतलायी है। ज्योतिषकी प्रक्रिया द्वारा विचार करनेपर ज्ञात होता है कि पांचवें तीर्थकरके तपकल्याणकी तिथि वैशाख शुक्ला नवमी शुद्ध है; क्योंकि इस तिथिको मघा नक्षत्र मिल जाता है। इसका कारण यह है कि वैशाखी पूर्णिमा विशाखा नक्षत्रको पड़ती है। विशाखासे विपरीत क्रमानुसार गणना करनेपर तथा पूर्णिमा तिथिसे विपरोत तिथि क्रमानुसार गणना करनेपर मघा वैशाख शुक्ला नवमीके दिन सिद्ध हो जाता है। अतएव कवि वृन्दावन द्वारा निरूपित तिथि अशुद्ध है । प्राचीन और अर्वाचीन मान्यता तथा ज्योतिष गणनाके अनुसार तपकल्याणकी तिथि वैशाख शुक्ला नवमी ही है।
ज्ञानकल्याणकी तिथि तिलोयपण्णत्तिमें पोषी पूणिमा बतायी गयी है । इस दिन हस्त नक्षत्र था। उत्तरपुराणम चैत्रशुक्ला एकादशी को मघा नक्षत्रके रहनेपर पाँचवें तीर्थकरको केवलज्ञानकी उत्पत्ति बतलायी है। वृन्दावन और मनरंगने चैत्र शुक्ला एकादशी तिथि हो केवलज्ञानको उत्पत्तिकी मानी है। ज्योतिषकी पद्धति द्वारा विचार करनेपर तिलोयपण्णत्तिकी मान्यता अशुद्ध प्रतीत होती है । क्योंकि पौषी पूर्णिमाको हस्त नक्षत्र नहीं आ सकता है, इस तिथिको सर्वदा चन्द्रोदयकाल में पुष्य नक्षत्र आता है । अतः हस्त और पौषी पूर्णिमाका योग ज्योतिषकी प्रक्रिया द्वारा सर्वथा असंभव है।
उत्तरपुराणकी मान्यता गणनासे शुद्ध आती है। क्योंकि चैत्र शुक्ला एकादशीको मघा नक्षत्र आ जाता है। यह ज्योतिषका अटल नियम है कि चन्द्रोदयमें चैत्री पूर्णिमाको चित्रा नक्षत्र आता है । अतएव चित्रा नक्षत्रसे विपरीत नक्षत्र तथा पूर्णिमा तिथिसे विपरीत तिथि गणना करनेसे चैत्र शुक्ला एकादशीको मधा नक्षत्र आ जाता है । अतएव यही पाँचवें तीर्थकरको कैवल्य प्राप्तिको तिथि है । हिन्दी कवियोंने इसी तिथि मान्यताको स्वीकार किया है ।
१. णवीए पुन्वण्हे मघासु वइसाहसुक्कपम्खम्मि ।
सुमई सहेदुगवणे णिक्कतो तदियउववासो ॥-तिलोय० ४, ६४८ २. सिते राज्ञां सहस्रण सुमतिनवमी दिने ।
मघाशशिनी वैशाखे पूर्वाह्ने संयमाश्रयम् ।।-उत्तर० ५१.७०-७१ ३. चैतसुकलग्यारस तिथि भाखा ।
ता दिन तप धरि निजरस चाखा ।। वृन्दावन चौबीसी विधान ४. जानि सुदी वैशाख, नौमी दिन तप ग्रहण किया । सत्यार्थयज्ञ ५. पुस्सस्स पुणिमाए रिक्खम्मि करे सहेदुगम्मिवणे ।
अवरण्हे उप्पण्णं सुमइजिण केवलं गाणं ॥-तिलोय० ४-६८२ ६. मघायां चैत्रमासस्य धवलैकादशीदिने । पश्चिमाभिमुखे भानौ कैवल्यमुदयादयत् ।।-उत्तर० ५१.७५
२२