Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
मध्यकी वेदी सबसे बड़ी वेदी है, इसपर सुनहला कार्य कलापूर्ण हुआ है । वेदीके मध्य में मुनिसुव्रत नाथकी श्यामवर्णकी प्रतिमा, इसके दाहिनी ओर अजितनाथको और बाई ओर संभवनाथकी प्रतिमा हैं। ये प्रतिमाएं भी वि० सं० १९८० को प्रतिष्ठित हैं। चौथी वेदीमें विक्रम संवत् १९७९ को प्रतिष्ठित चन्द्रप्रभु और शांतिनाथ स्वामीकी प्रतिमाएँ हैं । पाँचवीं वेदीके बीचमें कमलपर महावीर स्वामीकी बादामी रंगकी वी० सं० २४६२ की प्रतिष्ठित प्रतिमा है । इसमें आदिनाथ और शीतलनाथकी भी प्रतिमाएँ हैं।
धर्मशालाके भीतरका छोटा मन्दिर गिरिडीह निवासी सेठ हजारीमल किशोरीलाल जी ने बनवाया है । इस मन्दिरकी वेदीमें मध्यवाली प्रतिमा भगवान् महावीर स्वामीकी है । इसका प्रतिष्ठा काल माघ सुदी १३ संवत् १८४१ लिखा है । इसके बगल में पार्श्वनाथ स्वामीकी दो प्रतिमाएं हैं, जिनका प्रतिष्ठा काल वैशाख सुदी ३ सं० १५४८ लिखा है। इस वेदीमें और भी कई प्रतिमाएं हैं। गुणावा
___ यह सिद्धक्षेत्र माना जाता है, यहाँसे गौतम स्वामीका निर्वाण हुआ मानते हैं, पर यह भ्रम है । गौतम स्वामीका निर्वाणस्थान विपुलाचल पर्वत है, गुणावा नहीं। हाँ, इतनी बात अवश्य है कि गौतम स्वामी नाना देशोंमें विहार करते हुए गुणावा पहुँचे थे और यहाँ तपस्या की थी।
यह स्थान नवादा स्टेशनसे १3 मीलकी दूरीपर है। यहाँपर श्रीमान् सेठ हुक्मचंद जी साहबने जमीन खरीद कर धर्मशाला एवं भव्य मन्दिरका निर्माण कराया है। धर्मशालाके मन्दिरमें भगवान कुन्थुनाथ स्वामीकी ४३ फुट ऊँची श्वेतवर्णकी पद्मासन प्रतिमा है। इसकी प्रतिष्ठा चैत्र शुक्लाष्टमी सं० १९९५ में हुई है । वेदीमें चार पार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिमाएं हैं, जिनका प्रतिष्ठाकाल सं० १५४८ है । इस वेदीमें एक वासुपूज्य स्वामीकी प्रतिमा वैशाख सुदी ४ शनिवार सं० १२६८ की है। इस प्रतिमाकी प्रतिष्ठा सारंगपुर निवासी दाताप्रसाद भावसिंह भार्या अमरादिने करायी है। वेदीमें कुन्थुनाथ स्वामीकी प्रतिमाके पीछे सं० १२६८ की एक और प्रतिमा है । यहाँ गौतम स्वामीके चरण वीर सं० २४५३ के प्रतिष्ठित है । वेदी सुन्दर संगमरमर की है, इसका निर्माण कलकत्ता निवासी श्रीमान् सेठ माणिकचंद जी की धर्मपत्नीने कराया है।
धर्मशालाके दिगम्बर मन्दिरसे थोड़ी ही दूरपर जलमन्दिर है। यह मन्दिर एक ६-७ फीट गहरे तालाबके मध्यमें बनाया गया है । मन्दिर तक जानेके लिए २०३ फीट लम्बा पुल है । आजकल इस जल-मन्दिरपर दिगम्बर और श्वेताम्बर भाइयोंका समान अधिकार है, यहाँ एक दिगम्बर-पार्श्वनाथ स्वामीकी प्रतिमा तथा गौतम स्वामीको चरणपादुका है। इस चरणपादुकाकी प्रतिष्ठा सं० १६७७ में हुई है । दि० धर्मशालाका पुजारी प्रतिदिन इस जलमन्दिरमें अपनी प्रतिमा तथा चरणपादुकाका अभिषेक पूजन करता है। इस जलमन्दिरमें श्वेताम्बरीय आम्नायके अनुसार वासुपूज्य स्वामीके चरण, चौबीसी चरण, चौबीस स्थानोंपर पृथक्-पृथक चौबीस भगवानोंके चरण एवं महावीर स्वामीके चरण कई स्थानोंपर हैं। यहाँ मूलनायक प्रतिमा महावीर स्वामी को है । यह मन्दिर प्राचीन और दर्शनीय है।