Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
View full book text
________________
११४ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
महावीराचार्यने अपने गणितसार संग्रहमें अमोघवर्षकी महिमाका विस्तार करते हुए उसे स्याद्वाद सिद्धान्तका अनुगामी कहा है ।' डॉ० भाण्डारकरने लिखा है-“सौराष्ट्रकूट राजाओंमें अमोघवर्ष जैनधर्मका महान् संरक्षक था और यह बात सत्य प्रतीत होती है कि उसने स्वयं जैनधर्मको धारण किया था। एक अभिलेखमें बताया है कि आश्विन महीनेकी पूर्णिमाको सर्वग्रासी चन्द्रग्रहणके अवसरपर शक संवत् ७८२ बीत चुका था । और जगतुंगके उत्तराधिकारी राजा अमोघवर्ष प्रथम राज्य करते थे। उन्होंने अपने अधीनस्थ राजकर्मचारी वंकेयकी महत्त्वपूर्ण सेवाके उपलक्ष्यमें कोलुनूरमें वंकेय द्वारा स्थापित जिन मन्दिरके लिए देवेन्द्र मुनिको पूरा तलेपुर गांव और दूसरे ग्रामोंकी कुछ जमीन दानमें दी थी। ये देवेन्द्र मुनि पुस्तकगच्छ देशीयगण मूल संघके काल्य योगीशके शिष्य थे। यह वंकेय वही है जिसके नामसे वंकापुर राजधानी बनायी गयी थी। इसी वंकेयके पुत्र सामन्त लोकादित्यके समयमें जब अमोघवर्षका पुत्र कृष्ण द्वितीय राज्य करता था, गुणभद्राचार्यकृत उत्तरपुराणकी पूजा हुई थी।
कोन्नूर अभिलेख सेनापति वंकेयकी प्रार्थनापर उत्कीर्ण कराया गया था और उसने जिन मन्दिरोंके लिए दानमें भूमि प्रदान की थी। इस सम्राट्की माता महारानी गामुंडब्बे, उसकी पट्टमहिषी उमादेवी, पुत्र कृष्णराय, पुत्रियां शंखदेवी और चन्द्रबेलब्बे, चचेरे भाई कर्क आदि राज परिवारके साथ सभी व्यक्ति जैन धर्मानुयायी थे। अमोघवर्षके समयमें जैनधर्मकी सर्वांगीण उन्नति हुई।
अज्जनन्दि या आर्यनन्दिने जैनधर्मके अभ्युत्थानके हेतु तमिल देशमें अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये किये हैं । इसने उत्तर आर्काट जिलेके बल्लिमलइकी और मदुरा जिलेके अन्नइमलइ ऐवर मलइ, अलगर मलइ, करुगा लक्कुड़ी और उत्तम पाल्यम्की चट्टानोंपर जैन मूर्तियोंका निर्माण कराया । दक्षिणकी ओर बढ़ने पर तिन्नेवेल्ली जिलेके दूरुबड़ी स्थानमें भी जैन मूर्तियोंका निर्माण कराया।
___ त्रावणकोर राज्यके चितराल नामक स्थानके निकट तिरुचाणटु नामकी पहाड़ी है। इसपर चट्टान काटकर उकेरी गयी आकृतियोंको बहुतायत है। ये सब मूर्तियाँ जैन तीर्थंकरोंकी हैं और इनके नीचेके लेखमें लिखा है कि आर्यनन्दिने इनका निर्माण कराया । आर्यनन्दिके सम्बन्धमें उपलब्ध अभिलेखोंके अध्ययनसे यह अवगत होता है कि उनका समय ८वी-९वीं शताब्दी है । आर्यनन्दिने तमिल देशमें जैनधर्मके विकासके हेतु अनेक मूर्तियाँ उत्कीर्ण करायों, गुफाओंका निर्माण कराया और जैनकलाके विकासके लिए पूर्ण प्रयास किया।
होयसल राजवंशके कई राजाओंने जैनकला और जैनधर्मकी उन्नतिके लिए अनेक कार्य किये हैं। अङ्गडोसे प्राप्त अभिलेखमें विनयादित्य पोयसलके कार्योंका ज्ञान प्राप्त होता
१. गणितसार संग्रह, संज्ञाधिकार, पद्य ३ २. जैन कर्नाटक क०, पृ० ३२ ३. दक्षिण भारतमें जैनधर्म, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, प्रथम संस्करण, पृ० ९२ ४. वही, पृष्ठ ३७