Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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आदिपुराण में वर्णित नारी
प्रस्तावित
कवि या कलाकार अपने समय का प्रतिनिधि होता है । वह जिस युग में रहकर अपने साहित्यका निर्माण करता है, उस युगको छाप उसके साहित्यपर अवश्य पड़ती है; फलतः हम किसी भी महान् साहित्यकारको रचनामें उस समयके प्रचलित रीति-रिवाजोंका सम्यक्तया अवलोकन कर सकते हैं । यही कारण है कि किसी भी विशेष युग का साहित्य उस युग के इतिहास निर्माण का सुन्दर उपकरण होता है। आज से १११० वर्ष पहले जिनसेन नामक एक प्रख्यात जैनाचार्यने आदिपुराण नामक पुराण ग्रन्थकी रचना की है । इस पुराणमें धर्म, दर्शन, कथा, इतिहास आदि के साथ उस समयकी नारीके सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक आदि विविध क्षेत्रोंकी स्थिति का सूक्ष्म विश्लेषण किया है । यद्यपि उस युगमें भी नारी जातिपर पुरुष जाति वैयक्तिक एवं सामाजिक रूप से अनुचित लाभ उठाती थी, पर नारीकी स्थिति आजसे कहीं अच्छी और सम्मानपूर्ण थी । नारी मात्र भोगैषणाकी पूर्तिका साधन नहीं थी, उसे भी स्वतंत्र रूपसे विकसित और पल्लवित होनेकी पूर्ण सुविधाएँ प्राप्त थीं। वह स्वयं अपने भाग्यकी विधायिका थी। वह जीवनमें पुरुषकी अनुगामिनी बनती थी, दासी नहीं । उसका अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व था, पुरुषके व्यक्तित्वमें अपना व्यक्तित्व उसे मिला देना नहीं पड़ता था। आजकी तरह उस समयकी नारी को चूंघट डालकर पर्दे में बन्द नहीं होना पड़ता था। यहाँ पर्याप्त प्रमाण देकर आचार्य जिनसेनने नारीकी जिस स्थिति का निरूपण किया है, उसपर संक्षिप्त प्रकाश डाला जाता है। कन्या की स्थिति
जिनसेनने कन्याको माँ-बापका अभिशाप नहीं माना' । बल्कि बताया है कि समाज में कन्याकी स्थिति आजसे कहीं अच्छी थी। यद्य पि जिनसेनकी रचनासे यह ध्वनित होता है कि उस समयके समाजमें कन्याकी महत्ता पुत्रकी अपेक्षा कम ही थी फिर भी कन्या परिवारके लिए मंगल मानी जाती थी इस कथनकी सिद्धिके लिये हमारे निम्न प्रमाण हैं, जिनके आधारपर यह कहा जा सकता है कि वैदिक आचार्योंकी अपेक्षा जिनसेनने कन्याको परिवारके लिये गौरवस्वरूप बताया है।
(१) जबकि मनुस्मति आदि ग्रन्थोंमें षोडश संस्कारोंमें पुंसवन संस्कारको महत्ता दी गई है वहाँ जिनसेनने इस संस्कारकी गणना ही नहीं की। इससे स्पष्ट है कि जिनसेनकी दृष्टिमें कन्या और पुत्र दोनों तुल्य थे। आदिपुराण (३८ पर्व श्लोक ७६)में बताया गया है
पत्नीमृतुमती , स्नातां पुरस्कृत्यर्हदिज्यया । सन्तानार्थं विना रागात् दम्पतिभ्यां न्यवेयताम् ॥
१. पितरौ तां प्रपश्यन्तो नितरां प्रीतिमापतुः ।
कलामिव सुधासूतेः जनतानन्दकारिणीम् । -आदपुराण पर्व ६, श्लोक ८३ २०