Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति
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किया गया है, किसी भी तरह सम्राट अशोक' (द्वितीय) के बनाये हुए नहीं हो सकते । अधिक सम्भव तो उसके पौत्र राजा सम्प्रति द्वारा बनाये जाने का है, जिसने जैनधर्म स्वीकार कर अपने पितामहका पदानुकरण करते हुए शिलालेख खुदवाये होंगे ।
२ - प्रो० पिशल साहब ? रूपनाथ, सासाराम और वैराट के शिलालेखोंको अशोक के नहीं मानते, वे उन्हें सम्प्रति द्वारा खुदवाये बतलाते हैं ।
२३ - पालीभाषा के अधिकारी विद्वान् प्रो० विल्सन साहब लिखते हैं कि प्राणियोंका बध रोकने विषयक उसके आर्डीनेंस बौद्धधर्म की अपेक्षा उसके प्रतिस्पर्धी जैनधर्मके सिद्धान्तोंसे अधिक मेल खाते हैं ।
४ - भाण्डारकर महोदय लिखते हैं कि स्तम्भ लेख नं० ३ में पांच आस्रव बताये गये हैं । बौद्धधर्म में तीन ही आस्रव होते हैं । हाँ जैनधर्ममें पांच आस्रव माने गये हैं ।
५ - राधाकुमुद मुकुर्जी ने निष्कर्ष निकाला है कि फाहियान और युआन च्वांग नामके दो चीनी यात्री भारतवर्ष में आये थे, उनके किये हुए वर्णनोंमें इन शिलालेखोंकी चर्चा अवश्य है, किन्तु यह कहीं भी नहीं लिखा है कि ये शिलालेख अशोकके खुदवाये हुए हैं। केवल इतनी बात लिखी है कि ये लेख प्राचीन हैं, इनमें लिखी बात इनसे भी पहले की है ।
६ - प्रो० हुल्ट्श साहब " का मत है कि बौद्धमतकी तत्त्वविद्या में आत्मविद्या विषयक जो विकासक्रम बतलाया गया है, उसमें और शिलालेखोंकी लिपिमें धम्मपद विषयक जो विकासक्रम लिखा गया है, अत्यधिक अन्तर है । यह समग्र रचना ही जैनधर्मके अनुसार खोदी गयी है ।
७—अशोकके सभो शिलालेख सिकन्दरशाह के समयसे लगभग ८० वर्ष बादके सिद्ध होते हैं और इस गणनासे उनका समय ई० पू० ३२३-८० = ई० पू० २४३ वर्ष आता है । पर अशोककी मृत्यु ई० पू० २७० में हो चुकी थी, अतः ये शिलालेख अशोकके कभी नहीं हो सकते । इनका निर्माता जैनधर्मानुयायी सम्प्रति अपर नाम प्रियदर्शिन् ही है !
१. शिशुनागवंशी कालाशोक उपनाम महापद्म को प्रथम अशोक कहा जाता है । समय ई० पू० ४५४-४२६
२. इण्डियन एण्टीक्वेरी पु० ७ पृ० १४२
3. His ordinances concerning sparing of animal life agree much more closely with the Ideas of the heretical Jains than those of the Buddhists —ज० रा० ए० सो० १८८७ पृ० २७५
४. मिथ्यात्व अविरति, प्रमाद, कषाय और योग ये पांच आसवके कारण है ।
५. कोर० इन्स्क्रिप्शन इंडि० के० पु० १ पृ० XLVII
६. सर कनिंगहम् " बुक ऑफ एसियंट इराज" पु० २
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