Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
View full book text
________________
जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति १३३ पीटर्सन साहबने अनुवाद करते हुए कहा है कि इस तालाबको प्रथम सम्राट् चन्द्रगुप्तके समयमें विष्णुगुप्तने बनवाया था। इसके पश्चात् इसके चारों ओरकी दीवालें सम्राट अशोकके समयमें तुपस् नामक सत्ताधारीने पहली बार सुधरवायी थीं। तत्पश्चात् दूसरी बार पुनरुद्धार प्रियदशिन्के समयमें हुआ। इस कथनमें चन्द्रगुप्त, अशोक और प्रियदर्शिन् इन तीन शासकोंके नाम आये हैं । पीटर्सन साहबने प्रियदर्शिन् उर्फ सम्प्रतिके सम्बन्धमें शिलालेखसे निष्कर्ष निकाला है कि "उस राजवंशी पुरुषकी जन्मकालसे लेकर उत्तरोत्तर अप्रतिहत समृद्धि निरन्तर बढ़ती हो चली गयो"। ऐतिहातिक प्रमाण
(१) प्रो० रा० गो० भाण्डारकर का कथन है कि राजा सम्प्रतिको केवल १० दिनकी अवस्थामें गद्दीपर बैठाया गया था।
(२) मगधके सिंहासनपर श्रेणिकके पश्चात् सत्रहवां राजा सम्प्रति हुआ। उसका शासन काल वी० नि० सं० २३८ (ई० पू० २८९) से प्रारम्भ हुआ, जब सम्राट अशोकके शासनका अन्त हो रहा था।
(३) कर्नल टॉड साहब सम्प्रतिका शासन काल ई० पू० ३०३-३०४ में आरम्भ हुआ बताते हैं तथा उनका कहना है कि दस महीनेकी अवस्थामें यह गद्दीपर बैठाया गया था और १५ वर्षको अवस्थामें ई० पू० २९०-२८९ में इसका राज्याभिषेक हुआ था।
(४) तिब्बत देशके ग्रन्थोंमें लिखा गया है कि सम्प्रति५ बादशाह म० सं० २३५ में सिंहासनासीन हुआ था।
(५) प्रो० पिशल साहब की दृढ़ सम्मति है कि रूपनाथ, सासाराम और वैराटके शिलालेख भी सम्प्रतिके ही खुदवाये हैं। इस अभिप्रायसे प्रो० रोजडेविस साहब भी सहमत हैं ।
(६) दिव्यदान के पृष्ठ ४३० में स्पष्ट लिखा हुआ है कि सम्प्रति कुणालका पुत्र था । इस लेख में यह भी बताया गया है कि अशोकके बाद राजगद्दीपर आसीन होनेवाला प्रियदर्शिन् ही सम्प्रति है। यह जैनधर्मानुयायी था। इसके अनुसार सम्प्रतिका पुत्र बृहस्पति, बृहस्पतिका पुत्र वृषसेन तथा वृषसेनका पुण्यधर्मा था।
१. भावनगरके शिलालेख संस्कृत और प्राकृत १० २० । २. भाण्डारकर साहबकी रिपोर्ट IV, सन् १८८३-८४ पृ० १३५ । ३. इंडियन ऐंटिबेरी पु० ११ पृ० २४६ । ४. टॉड राजस्थान, द्वितीय आवृत्ति । ५. इण्डियन ऐंटिक्वेरी पु० ३२ पृ० २३० । ६. इण्डियन ऐंटिक्वेरी पु० ६ पृ० १४९ । ७. राधाकुमुद मुकुर्जी, अशोक पृ० ८, इण्डियन एन्टी० १९१४ पृ० १६८ फुट नो० ६७ ।