Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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१३४ भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान
(७) सम्प्रति' के समयमें जैनधर्मकी बुनियाद तमिल भारतके नये राज्योंमें भी जा जमी, इसमें सन्देह नहीं । उत्तर पच्छिमके अनार्य देशोंमें भी सम्प्रतिके समय जैन प्रचारक भेजे गये और वहाँ जैन साधुओंके लिए अनेक विहार स्थापित किये गये।
(८) बौद्ध साहित्य और जैन साहित्यको कथाओंसे सिद्ध होता है कि सम्प्रति जैनधर्म का अनुयायी प्रभावक शासक था । इसने अपने राज्यका खूब विस्तार किया था।
(९) कल्पसूत्र की टीकामें बताया गया है कि सम्प्रतिको रथ यात्राके समय आर्य सुहस्तिके दर्शनसे जाति स्मरण हो गया था; जिससे उसने जैन धर्मके प्रसारके लिए सवा करोड़ जिनालय बनवाये।
(१०) स्मिथ साहबने बताया है कि सम्प्रति प्राचीन भारतमें बड़ा प्रभावक शासक हुआ है। इसने अशोकने जिस प्रकार बौद्धधर्मका प्रचार किया था, उसी प्रकार जैनधर्मका प्रचार किया। धर्म प्रचारके कार्योंकी दृष्टिसे चन्द्रगुप्तसे भी बढ़कर इसका स्थान है ।
(११) तीन' खण्डोंके स्वामी परम प्रतापी कुणालका पुत्र महाराज सम्प्रति हुआ। यह अर्हन्त भगवान्का भक्त था, इसने अनार्य देशोंमें भी जैनधर्मके प्रचारकोंको भेजा था तथा जैन मुनियोंके लिए बिहार बनवाये थे । आर्य सुहस्तिसे इसने जिनदीक्षा ली थी। जीवन गाथा
सम्प्रति ने अपने बाहुबलसे अनेक देश-देशान्तरोंको जीतकर आधीन कर लिया था। दिग्विजयके पश्चात् यह एक दिन अपने उज्जयिनीके महलके वातायनमें बैठा हुआ था । इतने में अर्हन्त भगवान्की रथयात्राका जुलूस निकला, रथके ऊपरी भागपर आर्यमहागिरि और आर्य
१. भारतीय इतिहासकी रूपरेखा पृ० ६१६ । 2. Both the Buddhist and Jain traditions about Samprati have been
referred to us....Cf. Ray Chaudhuri, op. cip. p. 220. ३. सम्प्रति""पितामहदत्तराज्यो रथयात्राप्रवृत्त श्रीआर्यसुहस्तिदर्शनाज्जात जातिस्मृतिः....."
जिनालयसपादकोटि""अकरोत्-कल्पसूत्र सुखबोध टीका सूत्र ६ पृ० १६३ । 8. Almost all ancient Jain temples or monuments of unknown origin
are ascribed by rhe popular voice to Samprati, who is in fact
regarded as a Jaina Asoka"-Smith Early history of India p. 202. ५. तद्वंशे तु बिन्दुसारोऽशोकश्रीकुणालसूनुस्त्रिखण्ड भरताधिपः परमार्हतो अनार्यदेशेष्वपि प्रवर्तितश्रमणविहारः सम्प्रतिमहाराजश्चाभवत् ।
-विविधतीर्थकल्पे पाटलीपुत्रनगरकल्पः पृ० ६९ । ६. परिशिष्ट पर्व दूसरा भाग पृ० ११५–१२४ । ७. श्वेताम्बर आगम में आर्य महागिरिको दिगम्बर बताया है तथा इन्हें आर्य सुहस्तिका भाई
भी माना गया है । आर्य सुहस्ति आर्य महागिरिकी वन्दना करते थे तथा सब प्रकारसे उनका सम्मान करते थे।