Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
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जैन तीर्थ, इतिहास, कला, संस्कृति एवं राजनीति नवीन राजधानी मान्यखेटका निर्माण गोविन्द तृतीयने ही आरम्भ कर दिया था, किन्तु उसे राजधानीको पूरी तरह स्थानान्तरित कर देनेका समय नहीं मिला । अमोघवर्ष वयस्क हो गया था। अतः ई० सन् ८२१ में गुर्जराधिप कर्कराजने मान्यखेटमें ही अमोघवर्षका विधिवत् राज्याभिषेक किया । अमोघवर्षके प्रधान सामन्त कर्कराज और वीर सेनापति वंकेयरसने साम्राज्यको स्वचक्र और परचक्रके उपद्रवोंसे सुरक्षित रखनेका सफल प्रयत्न किया ।
अमोघवर्षने राजधानीको सुन्दर प्रासादों, सरोवरों, भवनों आदिसे अलंकृत किया । ८३० ई०में बेंगिके चालुक्योंका दमन किया और पाण्डयोंको पराजित किया । अपनी पुत्री शंख का विवाह पल्लव नन्दिवर्मन द्वितीयके साथ करके उसने पल्लवोंको मित्र बनाया। अमोघवर्णमें शासकके समस्त गुण वर्तमान थे। उसने राज्यमें पूर्णतया शान्ति स्थापित करनेका प्रयास किया।
सन् ८५१ ई० में अरब सौदागर सुलेमान भारत आया था। उसने दीर्घायु बलहरा नामसे अमोघवर्षका वर्णन किया है। इसका शासन सुचारु रूपसे व्यवस्थित था। यह विद्वानों और गुणियोंका प्रेमी था। इसकी सभामें अनेक विद्वान् विद्यमान थे । वीरसेन स्वामीके पट्टशिष्य आचार्य जिनसेन स्वामी उसके राजगुरु और धर्मगुरु थे। गुणभद्राचार्य कृत उत्तरपुराणमें अमोघवर्षद्वारा जिनसेनको मंगलरूपमें स्वीकार किये जानेका निर्देश है ।' जिनसेन रचित पार्वाभ्युदयसे भी इसकी पुष्टि होती है । जिनसेनके गुरु वीरसेनने शक संवत् ७३८में जब धवला टीका समाप्त की तब जगतुंग देव-गोविन्द तृतीयने सिंहासन छोड़ दिया था और बोद्दणराय या अमोघवर्ष राज्य करते थे। अमोघवर्षने दीर्घ आयु प्राप्त की थी और लगभग ६३ वर्षोंतक राज्य किया । शक संवत् ७९२ के ताम्रपत्रसे अवगत होता है कि इन्होंने मान्यखेटमें जैनाचार्य देवेन्द्रको दान दिया था। यह दानपत्र इनके राज्यके ५२ वें वर्ष का है ।
शक संवत् ७९९ के कन्हेरोको गुफामें प्राप्त हुए अभिलेखसे ज्ञात होता है कि इनका सामन्त कपर्दि था । इन्होंने इससे कुछ पहले ही अपने पुत्र अकालवर्ष या कृष्ण द्वितीयको राज्य कार्य सौंप दिया था। कहा जाता है कि उग्रादित्यने अपने कल्याणकारक नामक वैद्यक ग्रन्थकी रचना ८०० ई० पूर्व ही कर ली थी किन्तु अमोघवर्षके आग्रहपर उन्होंने उसकी राजसभामें आकर अनेक वैद्यों एवं विद्वानोंके समक्ष मद्य-मांस निषेधका वैज्ञानिक विवेचन किया और इस ऐतिहासिक विवेचनको हिताहित अध्यायके नामसे परिशिष्ट रूपमें अपने ग्रन्थमें सम्मिलित किया। प्रसिद्ध जैन गणिताचार्य महावीराचार्यने अपना सुविदित “गणित सारसंग्रह" इसी सम्राट्के आश्रयमें लिखा । योपनीय संघके आचार्य शाकटायन पाल्यकोतिने अपने सुविख्यात शाकटायन व्याकरण एवं उसकी अमोघ वृत्तिकी रचना की। अमोघवर्षने स्वयं ही संस्कृतमें प्रश्नोत्तर रत्नमाला नामक ग्रन्थ और कन्नड़में कविराजमार्ग नामक महत्त्वपूर्ण छन्द और अलंकार शास्त्र रचा । ऐतिहासिक विद्वानोंके मतानुसार अमोघवर्षको धर्मात्मा, सदाचारी, उदार एवं श्रेष्ठ चरित्रवान् बताया गया है। यह स्याद्वाद विद्याका अत्यन्त रसिक था। १. उत्तर पुराण, प्रशस्ति, पद्य ९ २. धवला प्रशस्ति , पद्य ६-९ ३. जैन साहित्य और इतिहास, पृ० १४८-१४९
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