Book Title: Bharatiya Sanskriti Ke Vikas Me Jain Vangamay Ka Avdan Part 02
Author(s): Nemichandra Shastri, Rajaram Jain, Devendrakumar Shastri
Publisher: Prachya Shraman Bharati
View full book text
________________
भारतीय संस्कृतिके विकासमें जैन वाङ्मयका अवदान प्रमेयरलमाला लघुवृत्ति'-इस टीकाके रचयिताके सम्बन्धमें कुछ भी ज्ञात नहीं , है । पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इस टीकाका रचनाकाल १७ वीं शती है।
शैली, भाषा और विषय-निरूपणकी दृष्टिसे भी इस टीकामें नवीनता बहुत कम अंशोंमें दिखलायी पड़ती है । प्रमेयरत्नमालामें आये हुए कठिन पदोंका विश्लेषण भर कर दिया है । शैली स्वतन्त्र भाष्य या विवेचनकी नहीं है, किन्तु टिप्पणात्मक है। पाठक जिन कठिन पदोंको यथार्थरूपसे हृदयंगम नहीं कर पाते हैं, उन पदोंका स्पष्टीकरण किया है। नयी बातें इस टीकामें नहीं मिलेंगी।
ग्रन्थ समाप्त करते हुए परीक्षामुखसूत्र और प्रमेयरत्नमालाके रचनाके कारणों पर प्रकाश डाला गया है।
श्रीमान् वैजयनामाभूदग्रणी गुणशालिनाम् । बदरीबालवंशालीव्योम्नि धुमणिजित ॥ तदीयपत्नी भुवि विश्रुतासीन्नाणाम्बनामा गुणशीलधामा । यां रेवतीति प्रथिताम्बिकेति प्रभावतीति प्रवदन्ति सन्तः । तस्मादभूद्विश्वजनीनवृत्तिर्दानाम्बुवाहो भुवि हीरपाख्यः । स्वगोत्रविस्तारनयोंऽशुमाली सम्यक्त्वरत्नाभरणार्चिताङ्गः॥ तस्योपरोधवशतो विशदोरुकीर्तेर्माणिक्यनन्दिकृतशास्त्रमगाधबोधम् ।
स्पष्टीकृतं कतिपयैर्वचनेरुदारर्बालप्रबोधकरमेतदनन्तवीर्यैः ॥ टीकाकारने स्वयं अपने सम्बन्धमें इतना ही लिखा है कि आचार्य अकलंक देवके वचनोंका सारांश लेकर मैं विवृत्ति लिखता हूँ। ग्रन्थमें सूत्रोंका व्याख्यान भी प्रमेयरत्नमालाके समान ही किया है । यद्यपि भाषा शैलीमें अन्तर है तथा टीकाकारने सूत्रार्थको कुछ विस्तृत कर देनेकी चेष्टा की है। जिन सूत्रोंका विशेषार्थ प्रमेयरत्नमालाकारने नहीं लिखा है, उन सूत्रोंका अर्थ इसमें भी छोड़ दिया गया है।
इन समस्त टीकाओंमें अर्थ प्रकाशिका, न्यायमणिदीपिका और प्रमेयरत्नमालालंकार तो शीघ्र प्रकाशित करने योग्य हैं। इन तीनों टीकाओंसे जैन न्याय शास्त्रके जिज्ञासुओंको विशेष लाभ होता। अच्छा हो कि तुलनात्मक टिप्पण देते हुए प्रमेयरत्नमालाका एक सुन्दर संस्करण निकाला जाय । प्रकाशक संस्थाओंको इस ओर ध्यान देना चाहिये ।
१. देखें-A Descriptive Catalcgue of the Sanskrit Manuscripts in the
Government Orienial Manuscripts Library, Madras, PP, 3975